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अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

भक्ति आन्दोलन का इतिहास | Bhakti Andolan Ka Itihaas in Hindi

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   भक्ति आन्दोलन का इतिहास | Bhakti Andolan Ka Itihaas in Hindi                  ∆ भक्ति की शुरुआत कहा से हुई ?   • अर्थ - ' भज् ' धातु से बने भक्ति शब्द का अर्थ है - सेवा ।  •  परिभाषा - " ईश्वर के चरणों में पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण कर देने एवं ईश्वर में पूर्ण रूप से अनुरक्त हो जाना ही भक्ति कहलाता है। "  ✓ भक्ति का उद्गम भारत देश में ईसाई धर्म के आने के साथ साथ हुआ ,इसका कारण यह था की भक्ति को जो मोक्ष का साधन कहलाती है , वह विदेशी प्रभाव के कारण ही है । • भक्ति आंदोलन के बारे में डाॅ. ग्रियर्सन लिखते है की - " बिजली की चमक के समान अचानक इन समस्त पुराने धार्मिक मतो के अंधकार के ऊपर एक नई बात दिखाई दी । कोई हिंदू या नहीं जानता कि यह बात कहां से आई और कोई भी इसके प्रादुर्भाव का कल निश्चित नहीं कर सकता" • डॉक्टर सेनार्ट के अनुसार - भारत में ही शक्ति अस्तित्व में आई ।   • वैदिक साहित्य में भी इसके प्रमाण उपलब्ध हैं।  • कई विद्वानों ने इन मतों को स्वीकार किया है और माना है की भक्ति का उद्गम...

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1935 भारत सरकार अधिनियम की विशेषताएं

1935 भारत सरकार अधिनियम की विशेषताएं        [ 1935 का भारत सरकार अधिनियम ]  ∆ भारत सचिव लॉर्ड ब्रेकनहेड ने साइमन कमीशन का भारतीयों के द्वारा विरोध किए जाने पर ,भारतीयों को एक सर्वमान्य संविधान बनाने की चुनौती दे दी ।  • भारतीयों ने इसे स्वीकार कर एक समीति का गठन किया जिसमे सदस्यो की संख्या 8 थी और इसके अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरु ने ली । इस समिति के द्वारा जो रिपोर्ट तैयार की गई थी वह "नेहरु रिपोर्ट" कहलाई। ∆ इसी बीच सन् 1932 में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री मेकडोनल्ड के द्वारा "सांप्रदायिक समझौता" की घोषणा हुई । इसके अंतर्गत हिंदू मुसलमानों के बीच मतभेग और संप्रदायो की एकता को खत्म करने का प्रयास किया गया था ।  • महात्मा गांधी ने इसका विरोध आमरण अनशन द्वारा किया था और इसके पश्चात "पूना समझौता"  के जरिए इसे वापस ले लिया गया ।  ∆ भारत के भावी संविधान की रूपरेखा पर हुए विचार विमर्श को "श्वेत पत्र"  में रूप में प्रकाशित किया गया था । जो की लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलनों में इंग्लैंड की सरकार द्वारा प्रकाशित हुआ था । ...

1861 भारत परिषद अधिनियम की धाराएं

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  1861 भारत परिषद अधिनियम की धाराएं  1861 का भारत परिषद अधिनियम  परिचय  इस अधिनियम के पारित होने के बावजूद भी भारतीय शासन पद्धति में कई दोष थे , जिनका उपाय किया जाना अत्यंत ही आवश्यक था , इनमे से कुछ प्रमुख दोष इस प्रकार थे  - 1- 1858 के अधिनियम के द्वारा केवल उन निर्देशन और आदेशों में ही परिवर्तन हुआ जो की इंग्लैंड से होते थे तथा भारतीय असंतुष्ट थे , व सुधार करना चाहते  थे इसका कारण यह था की इस अधिनियम का भारतीय प्रशासनिक प्रणाली पर कुछ खास असर नहीं पड़ा था। 2 -  1857 की क्रांति ने इस बात को स्पष्ट कर दिया की भारतीय संवैधानिक प्रणाली से भी नाखुश थे , तथा उसमे संशोधन चाहते थे । भारतीय संवैधानिक प्रगति करने के लिए ,भारतीय संविधान सभा की सदस्यता चाहते थे। परंतु 1858 के अधिनियम के कारण भारतीय इस अधिकार से वंचित रह गए ।  • 1858 में इंग्लैंड की संसद में यह मामला उठाया गया । लेकिन जहां एक ओर ग्लेडस्टन यह कहकर ऐसा करने से इनकार किया की : "जब भारत का एक बड़ा भाग अभी भी अंग्रेजो का विरोध कर रहा है तो ऐसे भारतीयों को प्रतिनिधित्व प्रदान करना उचित नहीं...

भारत में राष्ट्रवाद का उदय

        भारत में राष्ट्रवाद का उदय   भारत में पुनः राष्ट्रवाद का  विकास  • राष्ट्रवाद और भारतीय परिस्तिथियो की चर्चा करते है तो हमे फिर से ज्ञात होता है की , भारत पे विभिन्न यूरोपियन जनजातियों की नजर थी , व्यापारिक होने के साथ साथ प्रशासकीय भी थी , अपितु यूरोपियन जातियां ब्रिटेन , फ्रांस , इटली , डच , पुर्तगाली आदि , भारत पे साम्राज्य स्थापित करने में लगे थे , कुछ केवल व्यापार करना चाहते थे तो कुछ शासन । इसी प्रकार भारत का इतिहास लंबा और गहरा होता गया ।  • 18 वी शताब्दी के अंत से अर्थात 19 वी शताब्दी के प्रारंभ से भारत में सामाजिक , राजनीतिक , धार्मिक , के विषय संबंध में अंधविश्वास और मतभेद व्याप्त था ।  इसका परिणाम ये था की इन मतभेदों के कारणवश भारतीय राष्ट्रीयता घटती जा रही थी । परंतु भारत में कुछ ऐसे तत्वों का विकास होने लगा जिसके परिणामस्वरूप भारत को राष्ट्रता की भावना बढ़ने लगी थी , अंग्रेजो और विभिन्न यूरोपियन जातियों का भारतीयों के साथ व्यहवार और व्यापारिक नीतियां आदि भारतीय राष्ट्रीयता को पुनः व्यवस्थित करने का एक महत्वपू...

भारतीय परिषद अधिनियम 1892 ई० | Indian Council Act 1892 in Hindi

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 भारतीय परिषद अधिनियम 1892 | Indian Council Act 1892 in Hindi परिचय  • 1858 भारत परिषद अधिनियम ने भारत वासियों को शांति और सुकून की सांस दी थी क्योंकि इस अधिनियम से   कलुषित , कपटीय, लूटेरी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन का अंत किया गया था ।  • आशा थी की इंग्लैंड संसद के अधीन भारत में न्याय , शांति , रोजगार , और भारत को प्रशासन में भागीदारी मिलेगी , हालांकि भारतीय जनता को उम्मीद बेहद थी और कुछ प्रतिशत तक उम्मीद पूरी भी हुई थी ।  • 1892 से पूर्व 1861 भारत परिषद अधिनियम लागू हुआ था , इसी से ये स्पष्ट हुआ की भारतीय उम्मीद पूर्ण रूप से पूरी न हुई परंतु विकास और सुधार की राह में भारत आगे बढ़ना शुरू हुआ । 1861 के अधिनियम ने विशेष पद बनाए , प्रशासन को नया रूप दिया अपितु जो मुख्य मांग भारत सरकार की थी , प्रशासन में भागीदारी , लगान और कर व्यवस्था में सुधार , और सबसे विशेष स्वात्त शासन आदि थे जिनमे सरकार ने बिना किसी रुचि के अनदेखा कर दिया । इसलिए भारतीय जनता और भारत सरकार का आक्रोश अतंकत्वाद और आंदोलनों का सामना अंग्रेज सरकार को करना पड़ा ।  ∆ 1861 अधिनिय...

भारत सरकार अधिनियम 1858 ई० | Bharat Sarkar Adhiniyam 1858 in Hindi

भारत सरकार अधिनियम 1858 ई०| Bharat Sarkar Adhiniyam 1858 in Hindi  महारानी विक्टोरिया 1858 घोषणा पत्र  • " 1857 स्वतंत्रता संग्राम ", दिसंबर 31 , सन् 1600 की तिथि भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ब्रिटेन महारानी विक्टोरिया से भारत में व्यापारिक सुविधा और अनुमति प्राप्त हुई थी । व्यापार के माध्यम से ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सत्ता स्थापित करने के लिए व्यापारिक शक्ति को बढ़ाते हुए भारत में साम्राज्य स्थापित करने का कार्य करना प्रारंभ किया था , ये वक्त कम्पनी का भारत पे नियंत्रण और साम्राज्य विस्तार का  कार्यकाल रहा था । चतुराई , कूटनीति , चल - कपट से अंग्रेजो ने प्रारंभ में भारतीयों को लूटना शुरू किया था , तत्पश्चात धीरे - धीरे  अंग्रेजो को भारतीयों की सभी कमजोर कड़ियों का ज्ञात हुआ तब ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में अपने व्यापारिक प्रभुत्व को मज़बूत करते हुए विभिन्न प्रांतों और राज्यों को अपने अधीन करा ।  • भारत में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया प्रशासनिक शक्ति की स्थापना करने के लिए उत्सुक थी । भारतीयों के लिए कड़ी नीतियां बनाई गई और शोषण किया जाने लगा ।  • "प्ला...

वारेन हेस्टिंग्स के सुधार

   वारेन हेस्टिंग्स के सुधार   परिचय  • 18 वर्ष की उमर में वारेन हेस्टिंग्स भारत में क्लर्क के पद पर नियुक्त किया गया था । " 1757 प्लासी युद्ध और 1764 बक्सर युद्ध " , से भारत में अंग्रेजो ने प्रशासनिक अधिकार जमाना और इसकी नीव मजबूत करनी चालू कर दी थी । वारेन हेस्टिंग्स ने जब क्लर्क के पद पर कार्य किया तब उसने अपने आप को अधिक काबिल बनाया , प्रशासनिक कार्य और भारत के लिए राजनीति, अंग्रेजो का भारत पे उद्देश्य आदि उसने इन सब का गहन अध्ययन करा ।  • वारेन हेस्टिंग्स ने अपनी योग्यता , प्रशासनिक सक्षमता  से उन्नति करनी प्रारंभ की तत्पश्चात् , अंग्रेज सरकार द्वारा वारेन हेस्टिंग्स को उच्च पद पे नियुक्त ।  ∆ वारेन हेस्टिंग्स 1772 से 1774 बंगाल का गवर्नर  ∆ वारेन हेस्टिंग्स 1774 से 1785 भारत का गवर्नर जनरल =  वारेन हेस्टिंग्स को दो सोचनीय कठिनाईयां  ✓     द्वेध शासन ✓   त्रुटिपूर्ण कर व्यवस्था  [ प्रशासन में सुधार ] : हेस्टिंग्स भली भांति परिचित था अपने कर्तव्यों और अंग्रेजो को भारतीयों के लिए बनी नीतियों को , प्रशा...

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