भक्ति आन्दोलन का इतिहास | Bhakti Andolan Ka Itihaas in Hindi
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भक्ति आन्दोलन का इतिहास | Bhakti Andolan Ka Itihaas in Hindi
∆ भक्ति की शुरुआत कहा से हुई ?
• अर्थ - 'भज्' धातु से बने भक्ति शब्द का अर्थ है - सेवा।
• परिभाषा - "ईश्वर के चरणों में पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण कर देने एवं ईश्वर में पूर्ण रूप से अनुरक्त हो जाना ही भक्ति कहलाता है। "
✓ भक्ति का उद्गम भारत देश में ईसाई धर्म के आने के साथ साथ हुआ ,इसका कारण यह था की भक्ति को जो मोक्ष का साधन कहलाती है , वह विदेशी प्रभाव के कारण ही है ।
•भक्ति आंदोलन के बारे में डाॅ. ग्रियर्सन लिखते है की - "बिजली की चमक के समान अचानक इन समस्त पुराने धार्मिक मतो के अंधकार के ऊपर एक नई बात दिखाई दी । कोई हिंदू या नहीं जानता कि यह बात कहां से आई और कोई भी इसके प्रादुर्भाव का कल निश्चित नहीं कर सकता"
• डॉक्टर सेनार्ट के अनुसार - भारत में ही शक्ति अस्तित्व में आई ।
• वैदिक साहित्य में भी इसके प्रमाण उपलब्ध हैं।
• कई विद्वानों ने इन मतों को स्वीकार किया है और माना है की भक्ति का उद्गम स्थान भारत ही है परंतु कुछ विद्वान ऐसे भी है जो की भक्ति के अस्तिव्त में आने का मूल बिंदु सिंधु घाटी सभ्यता की शिव आराधना को मानते है न की वेदों को। इसका मुख्य कारण हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई के समय में प्राप्त मूर्तियां तथा अवशेषों को बताया गया है । जिनके देख कर स्पष्ट होता है की उस युग के लोगो द्वारा शिव आराधना की जाती थी ।
[क्यों हुआ भक्ति आन्दोलन]
भक्ति आन्दोलन शुरू होने के निम्नलिखित कारण थे -
1 - जटिल वर्ण व्यवस्था - भक्ति आंदोलन का मुख्य कारण वर्ण व्यवस्था थी क्युकी भक्ति आंदोलन में ऊंच नीच की भावना का भी विरोध था । वर्ण व्यवस्था इस आंदोलन का कारण इसलिए बनी क्युकी यह समय के साथ साथ जाति व्यवस्था में परिवर्तित होकर इतना जटिल रूप धारण कर चुकी थी की उच्च जातियों के लोग अपने से नीची जातियों के लोगो पर अत्यंत ही अत्याचार करने लगी थे। जिस कारण वह अन्य जातियों में परस्पर ही असन्तोष की स्थिति उत्पन्न होने लगी थी । भक्ति आन्दोलन तथा भक्ति मार्ग में इसका निवारण दिखाई देता था ।
2 - समन्वय भाव की उत्पति- हिंदू और मुस्लिम के अपार अंतराल तक संयुक्त रूप से एक साथ गुजर बसर करने के कारण उनमें पूर्व समय में परस्पर विवाद होते रहे । तथा वे एक दूसरे को परस्पर अपना प्रतिद्वंदी मानने लगे और उनमें प्रायः संघर्ष होते रहे । जिस कारण दोनो ही जातियों के बीच सद्भावना की आवश्यकता थी । जिस कारण शक्ति आंदोलन को सहयोग की प्राप्ति हुई ।
3 - जटिलता और कठोरता से रहित भक्ति मार्ग - विभिन्न धर्मों के अपने विशेष और प्रथक सिद्धांत अवश्य होते है और यदि हम चर्चा करे तो और हिंदू धर्म के भक्ति सिद्धांत की तुलना अन्य धार्मिक भक्ति सिद्धांतो से करे तो हिंदू धर्म की रूपरेखा और स्वरूप जटिल और कठोर मानी जाती है । धार्मिक करमकंडो की जटिलता के कारणवश हिंदू जनता ने भक्ति मार्ग को अपनाया क्योंकि इसमें जनता को धार्मिक सिद्धांतो का कठोरता से पालन नही करना पड़ता था ।
4 - हिंदुओ के विरुद्ध मुस्लिमो की अक्रमणकारी नीति - हिंदू समाज के साधारण जनसमूह स्वाधीनता पूर्वक मंदिरों में जाकर पूजा पाठ करने में असमर्थ थी ,इसका कारण मध्यकाल में मुस्लिम समाज के लोगो द्वारा मंदिरो और वहा की मूर्तियों को क्षतिपूर्ति करना था । जिस कारण भक्ति आंदोलन को बढ़ावा मिला । लोग उपासना करके मोक्ष प्राप्ति की कामना करने लगे ।
[ भक्ति आन्दोलन के विशेष सिद्धांत ]
भक्ति आन्दोलन के निम्नलिखित सिद्धांत थे जो की नकारात्मक तथा स्वीकारात्मक दोनों ही प्रकार के थे ।
1-स्वीकारात्मक सिद्धांत :
✓ स्वच्छ ह्रदय और भाव - कलंकित हृदय से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है । तथा स्वच्छ हृदय द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जाना संभव है ऐसा सभी संतो का मानना था ।
✓ ईश्वर के प्रति निस्वार्थ प्रेम - ईश्वर के प्रति अपार प्रेम , भक्ति और ज्ञान ही इकलौता ऐसा साधन है जो की मोक्ष की प्राप्ति कर सकता था । अतः भक्तों ने ईश्वर के प्रति प्रेम की भावना पर अधिक जोर दिया।
✓ मानवतावादी भाव - सभी संतो का मत था की धरती पर रहने वाले समस्त जीव एक ही ईश्वर के अवयव है जिनमे एक ही जीवात्म पीपीवर्तमान समुपस्थित है।जिस कारण उनमें मानवतावादी भावना थी।
✓ गुरु के प्रति आदर और सम्मान - संतो के अनुसान स्वय गुरु रूपी ईश्वर ही है जो की अज्ञानता के अंधकार से मनुष्य को ज्ञान की रोशनी की ओर ले जा सकता है , तथा ईश्वर प्राप्ति का जरिया है , अर्थात उन्होंने से गुरु को विशेष महत्व प्रदान किया ।
✓ ईश्वर एक है - लोग अपने धर्म के अनुसार अलग अलग देवी देवताओं को पूजते थे , परंतु भक्ति ने ईश्वर की एकता पर बल दिया । तथा भक्ति आंदोलन के चलते संतो का मत था की ईश्वर एक है ।
✓ निस्वार्थ आत्मसमर्पण क्षमता - इसके अंतर्गत संतो ने खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित करने की शिक्षा दी । और यह कहा की परमात्मा स्वर तुम्हारी मदद करेगा ।
2 - नकारात्मक सिद्धांत :
- इसके अंतर्गत जातिवाद, वर्ग भेदभाव , किसी विशिष्ट भाषा पर बल न देना, सामाजिक कुरीतियां इत्यादि भावनाए विद्धमान थी ।
[ भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत ]
1 - रामानंद - रामानंद एक समाज सुधारक थे । इनका जन्म 1299 में प्रयाग में हुआ था । तथा ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार के थे । इनके प्रारंभिक गुरु वेदांत थे । बाद में संप्रदाय के महान संत रघवानंद को अपना गुरु बनाया ।
• इन्होंने वाराणसी तथा प्रयाग में ही रहकर शिक्षा पूर्ण की ।
• धर्म सुधार तथा समान सुधार - इन्होंने समाज को सुधारने के लिए भक्ति का रास्ता अपनाया था । इन्होंने ने भी भक्ति को ही मोक्ष का साधन माना । तथा विष्णु की विपरीत ऐसे अराध्यदेव को अपनाने की चेष्टा की जो की हिंदुओ की सभी जातियों को संतुष्टि प्रदान कर सकता हो ।
• जातिभाव त्याग कर इन्होंने " मानहू एक भगत कै नाता" का विचार अपनाया ।
• इनके 12 शिष्य में जुलाहा( कबीर) , पन्ना( जात किसान) ,चमार( रैदास) ,राजपूत( सुखानन्द,सुरसुरानंद, आशानंद, भ्वानंद, परमानंद, महानंद ,और श्रीआनंद) थे ।
• रामानंद ने जातिप्रथा का विरोध इसे अनावश्यक बता कर किया। इसके अलावा उनकी लोकप्रियता के और भी कई निम्न कारण थे जैसे -
• अपने उपदेशों का क्षेत्रीय भाषा में प्रचार किया।
• समाज सुधार आंदोलन की भूमिका तैयार की ।
• मुस्लिम शासन में हिंदू समाज के संघर्षों की समाप्ती की।
2- कबीर - क्रांतिकारी कबीर का जन्म सन् 1425 में हुआ था । उनकी मां उस समय एक विधवा ब्राह्मण थी। उनकी मां द्वारा उन्हें वाराणसी में लहरतारा के तालाब के किनारे छोड़ जाने के पश्चात , जुलाहा नीरू तथा उनकी पत्नी नीमा ने उनका पालन पोषण किया ।
• कबीर एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है - महान ।
• उनका शुरुआती जीवन मुस्लिम परिवार में बीता ,मगर बाद में उन्होंने खुद को हिंदू मुसलमान से अलग एक योगी की संज्ञा देकर परिचित किया ।
3- रामानुजाचार्य - शंकराचार्य के अनुयायी कांजीवरम के रहने वाले यादव प्रकाश के प्रथम शिष्य रामानुजाचार्य का जन्म 1016 में हुआ था ।
• इनका जन्म स्थान मद्रास के पास तिरुपति अथवा पेरूम्बार था।
• इन्होंने धर्म के छेत्र में कई परिवर्तन किए ।
• इन्होंने भगवतगीता, वेदांत सूत्र, वादरायण का भाष्य,वेदांत सूत्र की व्याख्या लिखी ।
• यमुनामुनी के आमंत्रण पर उन्होंने उनसे श्रीरंगम में शिक्षा प्राप्त की ।
• दक्षिण बद्रिकाश्रम का विशाल मंदिर रामानुजाचार्य की सबसे प्रमुख रचना है। जो की श्रीरंगपट्टम में है।
• 1137 में इनकी मृत्यु हुई थी ।
[ भक्ति आंदोलन के प्रभाव ]
1- मुसलमानों के अन्याय में न्यूनता - भक्ति आंदोलन के कारण नाना प्रकार के धर्मो में एकता की भावना जागृत हुई ,जिस कारण मुसलमानों द्वारा किए जाने वाले अत्याचार ,अन्याय पर प्रभाव पड़ा।
2- अनियंत्रित (संकीर्ण) भावनाओ का तिरस्कार - भक्ति आंदोलन के परिणाम स्वरूप छुआ छूत , ऊंच नीच ,भेदभाव की भावना दूर हुई । संतो ने इस भावनाओ का विरोध किया तथा इनके निंदनीय बताया ।
3- बाह्यडम्बरो का अभाव - लोगो ने बाहरी आडंबरों को त्याग कर चरित्र निर्माण पर बल दिया । इनमे हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही संतो का तालमेल था ।
4- उदारता - भक्ति आंदोलन के जरिए संतो ने उदारता के उपदेश दिए । जिसके परिणाम स्वरूप लोगो ने भेदभाव की भावना का त्याग किया । तथा उदारता का संचार हुआ ।
5- हिंदुओ में धार्मिकता की भावना का संचार - भक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप लोगो में धार्मिकता की भावना की जन्म हुआ जिसके फलस्वरूप हिंदू समाज को संतुष्टि प्रदान हुई।
6- साहित्य विषय की उन्नति - इस आंदोलन के कारण साहित्य के छेत्र में विशेष उन्नति हुई । हिंदी ,बंगाली,मराठी इत्यादि भाषाओं में भक्ति ने ईश्वर का सराहना की । इसके अलावा सामाजिक सद्भावना में वृद्धि तथा आत्मगौरव ,राष्ट्रीय भाव का जन्म हुआ ।
निष्कर्ष : भक्ति आन्दोलन का इतिहास | Bhakti Andolan Ka Itihaas in Hindi ।
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