अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

वारेन हेस्टिंग्स के सुधार

   वारेन हेस्टिंग्स के सुधार 

 परिचय 

18 वर्ष की उमर में वारेन हेस्टिंग्स भारत में क्लर्क के पद पर नियुक्त किया गया था । "1757 प्लासी युद्ध और 1764 बक्सर युद्ध" , से भारत में अंग्रेजो ने प्रशासनिक अधिकार जमाना और इसकी नीव मजबूत करनी चालू कर दी थी । वारेन हेस्टिंग्स ने जब क्लर्क के पद पर कार्य किया तब उसने अपने आप को अधिक काबिल बनाया , प्रशासनिक कार्य और भारत के लिए राजनीति, अंग्रेजो का भारत पे उद्देश्य आदि उसने इन सब का गहन अध्ययन करा । 

• वारेन हेस्टिंग्स ने अपनी योग्यता , प्रशासनिक सक्षमता  से उन्नति करनी प्रारंभ की तत्पश्चात् , अंग्रेज सरकार द्वारा वारेन हेस्टिंग्स को उच्च पद पे नियुक्त । 


∆ वारेन हेस्टिंग्स 1772 से 1774 बंगाल का गवर्नर 

∆ वारेन हेस्टिंग्स 1774 से 1785 भारत का गवर्नर जनरल

=  वारेन हेस्टिंग्स को दो सोचनीय कठिनाईयां 

   द्वेध शासन

  त्रुटिपूर्ण कर व्यवस्था 

[ प्रशासन में सुधार ] : हेस्टिंग्स भली भांति परिचित था अपने कर्तव्यों और अंग्रेजो को भारतीयों के लिए बनी नीतियों को , प्रशासन को व्यवस्था सुधारना हेस्टिंग्स की पहली महत्वपूर्ण उसके भूमिका रही थी । वारेन हेस्टिंग्स ने निम्नलिखित प्रशासन विभाग में सुधार कर थे : 


[1]  उप नवाब का पद = उस समय के नवाब की स्तिथि राज्य संभालने के लिए प्रतिकूल न थी , इसलिए तत्कालीन उप नवाब  " बंगाल के रजा खां " और  "बिहार के शीताब राय " को पद से निष्कासित किया गया और दो नए उप नवाब को पद पे नियुक्त कर कार्यभार सौंपा गया । 


[2]  राज्य कोश का तबादला = उस समय बंगाल का राज्यकोष मुर्शिदाबाद में था परंतु हेस्टिंग्स ने दीवानी साथ ही राज्य कोष तो मुर्शिदाबाद से कलकत्ता करने का फैसला किया , इसके स्थानांतरण के पीछे काई कारण छुपे थे परंतु इस तबादले से कलकत्ता विशेष स्थान बन गया ।


[3]  लुटेरों और डाकुओं का दामन = बंगाल में फैली अशांति का एक विशेष कारण ये भी थे , जनसाधारण को लूट लूट कर डाकुओं ने समाज में भए का माहोल बना दिया था , हर व्यक्ति अपनी सुरक्षा  के लिए चिंतित रहने लगा था , डाकू डकैतों ने केवल जनसाधरण ही नही सरकारी संपत्ति और व्यापारिक माल को भी लूटा था । हैस्टिंग्स को इनका दमन करना बेहद जरूरी हो चुका था ।

• इसलिए हेस्टिंग्स ने कड़ी निगरानी में गुप्तचर को काम में लगाया और डाकू डकैतों चोरों को बांधी बना कर कड़ी सजा दी । हैस्टिंग्स का ये कार्य जनता के जीवन के लिए कुशल कार्य था । 


[4] द्वेध शासन की समाप्ति = इस शासन प्रणाली की स्थापना रॉबर्ट क्लाइव ने 1765 में करी थी , इस प्रणाली को सबसे पहले बंगाल में ही लागू किया हुआ था अपितु समय के साथ ये व्यवस्था सरकार के  लिए ही दोषपूर्ण सिद्ध होने लगी थी जिसके कारणवश अव्यवस्था फैलती जा रही थी, इसलिए 1772 में इस प्रणाली को पूर्ण रूप से हटा दिया गया था । द्वेध शासन के कारण भारत सभी स्थानों में अंग्रेजी सरकार को अपमानित और बेकार सरकार कहा जाने लगा और इस प्रणाली के खिलाफ विरुद्ध अधिक त्रीव होता जा रहा था । वारेन हेस्टिंग्स का द्वेध शासन की समाप्ति का कार्य भावी प्रशासनिक क्षमता को बढ़ावा देने और मजबूती प्रदान करने वाला था ।


[ हेस्टिंग्स के न्यायिक सुधार ] 


1. " सदर दीवानी न्यायालय और सदर निजामत " ,सदर दीवानी न्यायालय की स्थापना कलकत्ता में की गई थी , सदर दीवानी  मुकदमों की अपील व सुनवाई होती थी । सदर निजात, में फौजदारी मुकदमों की अपील व सुनवाई की जाती थी ।

2.  हर जिले में एक दीवानी और फौजदारी न्यायालय की स्थापना कर दी । दीवानी न्यायालय का न्यायाधीश " अंग्रेज़ कलेक्टर" और फौजदारी भारतीय न्यायालय में ही सीमित रखा । 

3. प्रत्येक जमींदार को अपने अधीन क्षेत्र में न्याय फैसला लेने का अधिकार था , हेस्टिंग्स ने जमींदारों के इस अधिकार को खत्म करा दिया , अब जमींदारी साधारण मुकदमे पे ही सुनवाई कर सकता था । 

4. न्यायिक व्यवस्था को अधिक उपयोगी बनाने के लिए सभी मुकदमों व अपीलों का रिकॉर्ड बना कर उन्हे हिफाजत से रखा जाता था । 

5. वारेन हेस्टिंग्स ने कानूनी कार्रवाई को और न्याय की आवश्कता को ध्यान में रखा और सभी मुकदमों के लिया अर्थात मुकदमों सुनवाई के लिए एक निश्चित अवधि की सीमा निर्धारित करी थी ।


[ व्यापारिक सुधार ] 


1. दस्तक या फ्री पास व्यवस्था का अंत किया।

2. भारतीय और अंग्रेजी दोनों ही व्यापारियों से कर वसूला।

3. एक व्यापारिक परिषद का गठन किया। 

4. पांच को छोड़कर बाकी सभी चुंगी घरों को समाप्त कर दिया।


[ राजस्विक सुधार ] 


1. कर कलेक्टर की नियुक्ति की।

2. राजस्व परिषद की स्थापना की । जो की कलकत्ता में था।

3. पांच वर्ष के स्थान पर केवल एक वर्ष कर वसूली का नियम पारित किया।


✓ अन्य कार्य  : उसने धन के व्यय को कम करने हेतु हर तरह से प्रयास किया , उसने बंगाल के नवाब की पेंशन को 32 लाख से बिल्कुल आधी कर दी,  जिससे 16 लाख का वार्षिक रूप से बचने लगे।

• इसी प्रकार शाह आलम के मराठों के साथ मिल जाने पर उसकी पेंशन पर रोक लगा दी जिससे 32 लाख की  सालाना बचत हुई ।

• अवध की सहायता के बदले में उसे 40 लाख रुपए मिले।


निष्कर्ष : 

∆   वारेन हेस्टिंग्स एक योग्य प्रशासक था अपितु उसकी योग्यता तब सिद्ध होनी प्रारंभ हुई जब उसने बंगाल की स्तिथि को सुधारने के लिए प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए प्रशासनिक दोषों का अंत कर दिया। 

हेस्टिंग्स की नीतियां और प्रशासनिक  भूमिका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।



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