अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

भारत में हरित क्रांति

   [ भारत में हरित क्रांति ]

परिचय 

हरित क्रांति शब्द को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति विलियम एस गौड थे । 

हरित क्रांति के जनक नारमन बोरलॉग थे । इनका जन्म 25 मार्च 1914 को हुआ था । इनके जन्म दिवस को ही "हरित क्रांति दिवस" के रूप में मनाया जाता है । ये एक कृषि वैज्ञानिक थे। जिन्होंने हरित क्रांति की नींव दुनिया के समक्ष रखी । 

• भारत में हरित क्रांति - सी. सुब्रमण्यम, एम एस स्वामीनाथन

 भारत में हरित क्रांति की शुरूरत "पंजाब" से हुई थी ।

कृषि उत्पादन को दूर-दूर तक फैलाने का प्रयास चौथी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत किया गया था इस योजना के प्रारंभ होने के 10 साल के अंदर ही गेहूं की फसल का उत्पादन तीव्र गति से चलने लगा । 


     [ हरित क्रांति का समाज पर प्रभाव ]

∆ लाभकारी प्रभाव -

1. भाग्यवादी विचारधारा का अंत -

भारत में हरित क्रांति के परिणाम स्वरुप किसान यह मानने लगे थे की अगर वह कृषि क्षेत्र में नए प्रयासों , प्रशिक्षणों तथा नए तरीकों को अपनाते हैं तो वह अपनी वर्तमान स्थिति को भी बदल सकते हैं जो कि किसानो की आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

भारत में हरित क्रांति तथा स्वतंत्रता से पूर्व किसानो की यह मनोवृति थी कि जो कुछ भी उनके जीवन में घटित होगा वह निश्चित है तथा वे उसे अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर लिया करते थे परंतु प्रति हेक्टेयर जब कृषि क्षेत्र में उत्पादन बड़ा तो कृषक समाज की यह मनोवृति पूरी तरह से परिवर्तित हो गई तथा किसानों ने भाग्यवादी विचारधारा का त्याग किया।


2. धार्मिक अंधविश्वास में विघटन -

हरित क्रांति से पहले भारत में ग्रामीण समाज किसी भी प्रकार की बीमारी ,भुखमरी , बेकारी आदि समस्याओं को अपने पूर्व जन्म का फल मानकर रह जाते थे । उनका यही अंधविश्वास तथा रूढ़िवादिता ही ग्रामीणों तथा कृषकों के लिए अभिशाप बनी रही । तत्पश्चात जब भारत में हरित क्रांति का आगमन हुआ तो उसके फलस्वरुप कृषकों की इस अंधविश्वास की भावना का भी अंत हुआ तथा समय के साथ आज ग्रामीण समाज अपनी दशा का दोष अपने पूर्व जन्म के कर्मों को न मानकर शासन के लापरवाही को मानते हैं।


3. जागरूकता में वृद्धि -

हरित क्रांति से पूर्व ग्रामीण कृषक अशिक्षा के कारण जागरूक नहीं थे जिस कारण वे अत्यंत ही सरल जीवन व्यतीत करते थे ।  जिसके फल स्वरुप कई कृषक प्रशासन द्वारा जारी किए गए उन कार्यक्रमों तथा नई प्रौद्योगिकी योजनाओं से वंचित रह जाते थे जो उनके लिए लाभकारी साबित हो सकती थी । इन योजनाओं का लाभ केवल कुछ ही शिक्षित ग्रामीण तथा किसानो तक ही सीमित रह गया था । 

हरित क्रांति के फलस्वरुप मंत्रणा नेतृत्व अथवा नए सामाजिक नेतृत्व का विकास हुआ ।साधारण जीवन व्यक्तित्व करने वाले ग्रामीण उन्हें अपना सलाहकार समझते वह इनका ग्रामीण समाज में एक विशेष स्थान बन चुको था।


4.कृषि हेतु ग्रामीणों के लिए साधन -

हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप  ग्रामीण तथा कृषि समाज कृषि क्षेत्र में नए-नए प्रयासों को अपनाने में किसी भी संकोच या संदेह की अनुभूति ना करते हुए कृषि संबंधित प्रदर्शनियों तथा मेलों में स्वयं भाग लेकर खेती संबंधित उत्पादन में वृद्धि करने तथा कृषि क्षेत्र में और अधिक निपुणता से कार्य करने का प्रयास करते हैं।


5. स्थानांतरण -

हरित क्रांति के फल स्वरुप अब ग्रामीण व कृषकों में नई प्रौद्योगिकी , कृषि उपज तथा खेती के नए-नए तरीकों के प्रति जागरूकता आई  कृषक अब फसल को नगरों में बेचने लगे। जिस कारण नगरों के संपर्क में आने के परिणाम स्वरुप कृषकों को खेती संबंधित योजनाओं , उपयोगी परिवर्तनों तथा नए तरीकों का अन्वेषण करने का भी मौका मिला ।  जिससे कृषक समाज के सामाजिक स्तर में भी काफी सुधार आया।



 ∆ हानिकारक प्रभाव -

1. आसमान कृषक वर्ग -

हरित क्रांति के परिणामस्वरुप ग्रामीण क्षेत्र में दो वर्गों का उदय हुआ जिसमें पहले थे नव अभिजात वर्ग तथा दूसरे सामान्य कृषक वर्ग

अभिजात वर्गों की स्थिति सामान्य कृषकों की अपेक्षा काफी अच्छी थी ।  इसके अलावा हरित क्रांति के अंतर्गत अकाल क्षेत्र की अपेक्षा उन स्थानों पर अधिक ध्यान एकाग्र किया गया जो कि पहले से ही लगभग संपन्न क्षेत्र के अंतर्गत आते थे जिस कारण आर्थिक सामाजिक तनाव  उत्पन्न हुए तथा दोनों वर्गों के बीच असंतोष फैलने लगा।


2. कृषि उपज की लागत -

गेहूं की अपेक्षा भारत में अन्य फसलों की उपज में अनिश्चितता बनी रही ,जिस कारण गेहूं को छोड़कर अन्य फसलों की लागत बढ़ती गई । नई प्रौद्योगिकी अपने के कारण ही फसल की लागत में भी बढ़ोतरी हुई जिसके परिणाम स्वरूप केवल जो उच्च व बड़े किसान थे उन्हें तो इसका लाभ प्राप्त हुआ परंतु छोटे किसान इन नई प्रविधियां को अपने में वंचित रहे क्योंकि वह आर्थिक रूप से इतनी संपन्न ना थे कि वह नई तकनीकी योजना तथा नए कृषि तरीकों को अपना सके और अगर वह इन तरीकों को अपनाते भी तो उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता रहा।


3. यंत्रीकरण का प्रभाव -

हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप कृषि भूमि में कार्य करने वाले मजदूरों की जगह तकनीकी मशीनों ने ले ली जिस कारण मजदूरों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा।


4. अभिजात वर्ग के कारण भूमि सुधार में बधाये - 

हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप क्योंकि नव अभिजात वर्ग समृद्ध होते गए इस कारण या भूमि भ्रष्ट भी हो चुके थे अतः यह भूमि सुधार की समस्याओं का कारण बनते गए । यह नव अभिजात वर्ग आर्थिक स्थिति से संपन्न थे तथा नगरों के संपर्क में आने से नए तरीकों को अपने जीवन में उतारते तो गए परंतु इनमें स्वार्थ की भावना का भी उदय हो चुका था जिसके परिणाम स्वरूप यह अभिजात वर्ग सामान्य वर्ग तथा मजदूर अथवा कृषक समाज की भूमि पर कब्जा करने लगे। अंततः यह अभिजात वर्ग भूमि सुधार में रुकावट का कारण बनते गए।


5. कृषि कार्यक्रम द्वारा प्रदेशों के मध्य असमानता - 

हरित क्रांति के अंतर्गत जितने भी कार्यक्रम किए गए वह सिंचाई की सुविधा तथा वर्ष की स्थिति को देखते हुए केवल उनकी प्रदेशों में किए गए जहां यह सुविधा उपलब्ध थी जिस कारण हरित क्रांति के कार्यक्रम सीमित क्षेत्र तक ही रहे जिसके परिणाम स्वरूप जो क्षेत्र सिंचाई की दृष्टि से समुचित थे उनमें तकनीकी तथा में प्रौद्योगिकी तरीकों पर अधिक ध्यान दिया गया तथा बाकी क्षेत्र उनसे वंचित रहे जिस कारण उन वंचित प्रदेशों में किसानो की आर्थिक समस्या का हल ना हो सका । 


हरित क्रांति हरित क्रांति के अंतर्गत किए गए कुछ विशेष योजनाएं व कार्यक्रम -

हरित क्रांति के अंतर्गत कई विशेष कार्यक्रम किए गए जैसे -

1. फसलों की खरीदी तथा बेचने का मूल्य निर्धारित कर दिया गया इसका कारण यह था कि किसानों के पास अधिक फसल थी जिसके कारण वह उन्हें कम मूल्य पर बेचते थे और उन्हें इसका सही मूल्य नहीं प्राप्त हो पता था।

2. एक ही वर्ष में एक से अधिक फसलों को उगाने का चलन हुआ जिससे कृषकों को अधिक लाभ हुआ।

3. नए प्रयोग के परिणाम स्वरुप नई मशीनों का प्रबंध कृषि कार्य हेतु किया जाने लगा। किसान जिन बैलों की सहायता से खेत जोतते थे उन्हें किसी अन्य कार्य में लगाकर उनके स्थान पर आधुनिक मशीनों तथा ट्रैक्टरों से खेत को जोता जाने लगा । जिससे कम समय में ही अधिक से अधिक कार्य आसानी से होने लगे।

4. कृषि भूमि , कृषको हेतु तथा कृषि क्षेत्र हेतु कई निगमों की स्थापना की गई ताकि किसानों को नए बीज, नए उर्वरक, उपकरण आदि आसानी से उपलब्ध कराए जा सके। 

इनमें खाद्य निगम, राष्ट्रीय बीज निगम, कृषि पुनारवित्त निगम मुख्य थे।

5. हरित क्रांति के कार्यक्रमों को परिणाम स्वरुप उर्वरकों को लेकर किसानों के मन में जो भ्रम थे उन्हें उन भ्रमों से मुक्त कराया गया तथा उर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहन मिला । अब किस बिना किसी चिंता के अपने खेतों में उर्वरकों का प्रयोग खेती के लिए करने लगे जिससे खेती में काफी लाभ हुआ ।

• हरित क्रांति को हम "सदाबहार क्रांति" के नाम से भी जानते है ।

निष्कर्ष : भारत में हरित क्रांति ।

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