अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

भारतीय परिषद अधिनियम 1892 ई० | Indian Council Act 1892 in Hindi

 भारतीय परिषद अधिनियम 1892 | Indian Council Act 1892 in Hindi

परिचय 

1858 भारत परिषद अधिनियम ने भारत वासियों को शांति और सुकून की सांस दी थी क्योंकि इस अधिनियम से   कलुषित , कपटीय, लूटेरी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन का अंत किया गया था । 


आशा थी की इंग्लैंड संसद के अधीन भारत में न्याय , शांति , रोजगार , और भारत को प्रशासन में भागीदारी मिलेगी , हालांकि भारतीय जनता को उम्मीद बेहद थी और कुछ प्रतिशत तक उम्मीद पूरी भी हुई थी । 


1892 से पूर्व 1861 भारत परिषद अधिनियम लागू हुआ था , इसी से ये स्पष्ट हुआ की भारतीय उम्मीद पूर्ण रूप से पूरी न हुई परंतु विकास और सुधार की राह में भारत आगे बढ़ना शुरू हुआ । 1861 के अधिनियम ने विशेष पद बनाए , प्रशासन को नया रूप दिया अपितु जो मुख्य मांग भारत सरकार की थी , प्रशासन में भागीदारी , लगान और कर व्यवस्था में सुधार , और सबसे विशेष स्वात्त शासन आदि थे जिनमे सरकार ने बिना किसी रुचि के अनदेखा कर दिया । इसलिए भारतीय जनता और भारत सरकार का आक्रोश अतंकत्वाद और आंदोलनों का सामना अंग्रेज सरकार को करना पड़ा । 


1861 अधिनियम के विरुद्ध आन्दोलन तेज़ी पकड़ता गया और अंग्रेज़ सरकार की चिंता और बढ़ती गई । परिणामस्वरूप 1892 का अधिनियम पारित करना एक विवशता भी थी , 1861 भारतीय परिषद अधिनियम की विफलता का परिणाम 1892 भारत कौंसिल अधिनियम रहा । 


Indian-Council-Act-1892-in-Hindi


  [1892 भारत कौंसिल अधिनियम की धाराएं ]


[1]  केंद्र और प्रांतीय विधानमंडल सदस्य को वार्षिक बजट पे सवाल - जवाब पूछने की अनुमति प्राप्त । 


[2]  केंद्र और प्रांतीय विधायक अब सार्वजिक मुद्दो पे प्रशन उत्तर कर सकते थे। 


[3]  विधान परिषदों के सदस्य 2/5 सदस्य गैर सरकारी होने  आवश्यक । 


[4] सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष किया गया परंतु सरकार की अनुमति विशेष थी ।


[5] भारत सचिव की स्वीकृति से वायसराय अपनी कार्यकारिणी परिषद के सदस्यों की संख्या घटा बढ़ा सकता  था ।


[6]  विधान परिषद की संख्या में वृद्धि की गई, केंद्र विधान मंडल में अधितर 16 और कम से कम 10 सदस्य होने निर्धारित । 


[7] बंगाल विधानमंडल सदस्य 20 होने निश्चित किए गए थे।


[8] मुंबई और मद्रास प्रांतीय विधानमंडल में सभा अध्यक्ष और महादिवक्ता के सिवाए , अतिरिक्त सदस्य कम से कम 4 हो और अधिकतर 20 होने निश्चित किए गए थे ।


[9] उत्तर – पश्चिमी सीमा के प्रांत में कम से कम 9 सदस्य हो और अधिक से अधिक 15 ही नियुक्त किया जा सकते थे ।


           [ 1892 अधिनियम के महत्व ] 

अधिनियम को कोई विशेष लोकप्रियता प्राप्त न हुई अपितु भारत के संवैधानिक विकास के लिए उपयोगी माना गया था । 

✓ अधिनियम के तहत : 

प्रथम बार विधान परिषद को बजट पे सवाल जवाब बहस करने पूरक प्रश्न करने की अनुमति मिली , इसकी वजह से विकास के लिए विशेष निर्णय लिए जाना आसान हुआ क्युकी विभिन्न स्थानों की समस्याओं की सूचना प्राप्त होने लगी थी ।

✓ अधिनियम के तहत : 

निर्वाचन पद्धति का जन्म भी हुआ , हालाकि प्रारंभ में ये व्यवस्था अप्रताक्ष्य ही थी । 


            [ 1892 अधिनियम की आलोचना ] 

महत्व होने के साथ ही साथ इस अधिनियम में कोई ऐसी   धारा नही प्रस्तुत थी जिसकी भारतीय जनता अपेक्षा कर रही थी , जिस सोच और अपेक्षा से जनता और भारतीय राजनीतिक दल अंग्रेज सरकार के इस अधिनियम को समर्थन कर रहे थे धीरे धीरे विरुद्ध प्रकट करने लगे जो की व्यवहारिक ही था । 


✓ इस अधिनियम में : 

विधान सभाओं के अंर्तगत आने वाले कार्य क्षेत्र बहुत सीमित थे ,और तो और केंद्र सरकार का अधिक हस्तक्षेप था , परिणामस्वरूप व्यवस्थित ढंग से विधान परिषद कार्य नहीं कर पा रही थी 


✓ इस अधिनियम में : 

चुनाव पद्धति अप्रत्यक्ष थी , इस पद्धति के का दोष था की  इसमें जनता द्वारा चुने गए सदस्य होने के स्थान पे सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य थे । 


✓ इस अधिनियम में : 

परिषदों मे भारतीय सदस्य नियुक्त तो किए गए थे परंतु सदस्यों में कोई कार्य शक्ति और सुविधाएं निहित नही करी गई थी अर्थात अवसर और सुविधा बेहद कम दिए जाते थे , भारतीय सदस्य संख्या मात्र ही सदस्य बनाया गए थे ।


✓ इस अधिनियम में : 

सरकारी धन के उपयोग और खर्च को संतुलित योजनाबद्ध नही किया गया था , धन का फिजूल खर्च हो रहा था ।

• विधान परिषदों को बजट पे सवाल पूछने का अधिकार अवश्य मिला था अपितु तब जब व्यय उपयोग निश्चित किया जा चुका होता था ।


✓ इस अधिनियम में : 

संप्रदाय प्रतिनिधित्व की व्यवस्था कलुषित नजर आती थी , विभिन्न सांप्रदायो के प्रतिनिधित्व में किसी प्रकार की व्यवस्था स्थापित नही करी गई थी ।


∆निष्कर्ष :  गुण और दोष से भरा ये अधिनियम इतिहास में विशेष स्थान रखता है , परंतु 1892 के अधिनियम से यह स्पष्ट हो गया था की 1858 से ही भारतीय मांग और अपेक्षा को अंग्रेज सरकार अनदेखा य नजरंदाज करने में लगी थी और जो भी कार्य कर रही थी वह अपने स्वार्थ और सरकारी विकास को नजर में रखते हुए कर रही थी ।

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