अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

1935 भारत सरकार अधिनियम की विशेषताएं

1935 भारत सरकार अधिनियम की विशेषताएं  

     [ 1935 का भारत सरकार अधिनियम ] 

भारत सचिव लॉर्ड ब्रेकनहेड ने साइमन कमीशन का भारतीयों के द्वारा विरोध किए जाने पर ,भारतीयों को एक सर्वमान्य संविधान बनाने की चुनौती दे दी । 

• भारतीयों ने इसे स्वीकार कर एक समीति का गठन किया जिसमे सदस्यो की संख्या 8 थी और इसके अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरु ने ली । इस समिति के द्वारा जो रिपोर्ट तैयार की गई थी वह "नेहरु रिपोर्ट" कहलाई।

इसी बीच सन् 1932 में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री मेकडोनल्ड के द्वारा "सांप्रदायिक समझौता" की घोषणा हुई । इसके अंतर्गत हिंदू मुसलमानों के बीच मतभेग और संप्रदायो की एकता को खत्म करने का प्रयास किया गया था । 

महात्मा गांधी ने इसका विरोध आमरण अनशन द्वारा किया था और इसके पश्चात "पूना समझौता" के जरिए इसे वापस ले लिया गया । 

भारत के भावी संविधान की रूपरेखा पर हुए विचार विमर्श को "श्वेत पत्र" में रूप में प्रकाशित किया गया था । जो की लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलनों में इंग्लैंड की सरकार द्वारा प्रकाशित हुआ था । 

  संसद के दोनो सदनो के बीच श्वेत पत्र को एक समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया । यह समिति एक सम्मिलित संयुक्त समिति थी । इस समिति ने श्वेत पत्र पर विचार कर एक रिपोर्ट तैयर की , जिसके आधार पर 1935 का अधिनियम पारित हुआ था । 


  [ 1935 अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं ] 

∆ इस नियम की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार थी - 

1. प्रांतीय स्वयवत्ता - 

1935 अधिनियम के द्वारा प्रांतों को स्वयवत्ता प्रदान की गई । इसके अंतर्गत शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया गया ,तथा स्वायत्त शासन की शुरुआत हुई । 

• प्रांतों को नए संविधानिक अधिकार प्राप्त हुऐ। 

• अपेक्षा की गई की मंत्री परिषद के द्वारा दिए सुझावों के अनुसार ही गवर्नर कार्य करे।

परंतु गवर्नरों को प्राप्त शक्तियों के कारण स्वायत्तता नाम की ही रह गई थी इसका कारण इस नियम के रहे गवर्नरो को दिए अधिकार थे जैसे -

गवर्नर को पूरी आजादी थी की वह मंत्रियों की इच्छा और परामर्श को भी ठुकरा सकता था ,और अपनी इच्छा से कोई भी निर्णय ले सकता था । 

मंत्रियों को अपनी इच्छा के अनुसर उन्हें पद से हटा भी सकता था और नियुक्त भी कर सकता था । 

इसके अलावा वह प्रांतीय मामले में भी हस्तक्षेप करने हेतु स्वतंत्र था जैसे -

प्रांतों के गवर्नरों को वह कोई भी निर्देश दे सकता था , 

✓ कोई भी उत्तरदाई शासन को समाप्त करने हेतु भी गवर्नल जनरल पूर्ण रूप से स्वतंत्र था । 


2. अखिल भारतीय संघ की शुरुआत -

संघात्मक शासन प्रणाली की शुरुआत 1935 के अधिनियम से हुई । इसके अंतर्गत सम्पूर्ण भारतीय प्रांतों तथा राज्यों का एक संघ बनाने का प्रस्ताव था। 

कोंसिल ऑफ स्टेट में 260 ने से 104 सदस्य और संघ असेंबली में 375 में से 125 सदस्य नियुक्त हुए । 

भारतीय संघ बनाने हेतु दो प्रमुख शर्ते थी - 

1. राज्यों की संख्या इतनी हो की उनके कोंसिल ऑफ स्टेट में से कम से कम 52 प्रतिनिधि भेजने का अधिकार प्राप्त हो । 

2. रियासतों की जनसंख्या सारी रियासतों की जनसंख्या की आधी जनसंख्या से कम नहीं होनी चाहिए।


3. केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत -

✓ द्वैद्ध शासन की स्थापना 1935 के अधिनियम के द्वारा की गई । जिससे पता चलता था की अंग्रेजी सरकार भारतीयों को किसी भी प्रकार से, किसी भी तरह की कोई भी शक्ति प्रदान करने के पक्ष में न थी । 

इस नियम के द्वारा केंद्र विषय को दो भागों में बाटा गया - 1. संरक्षित और 2. हस्तांतरित ।

संरक्षित के अंतर्गत - प्रतिरक्षा,धार्मिक विषय,आदिवासी छेत्र ,वैदेशिक संबंध थे । 

हस्तांतरित विषयो के अंतर्गत - शेष सभी विषय आते थे। 


4.  केंद्रीय विधान मंडल व्यवस्था  - 

संघीय विधानमंडल का स्वरूप दो सदनो वाला हो चुका था । जो की 1935 के अधिनियम के तहत किया गया था । 

• इनमे उच्च सदन - राज्य परिषद और

    • निचला संघ - संघीय विधान सभा कहलाया।

समिति के लोगो को ही सदस्य को नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त था ।

संघीय सभा में सदस्य की संख्या 375 होती थी ,जिनमे 125 भारतीय नरेशो के प्रतिनिधि और 80 मुसलमान थे । 

वित्तीय विधेयक , गवर्नल जनरल की अनुमति के बिना प्रस्तुत करने की अनुमति न थी । क्युकी उसे किसी भी विधेयक को अस्वीकार करने का अधिकार प्राप्त था । 


5. संघीय न्यायालय की स्थापना -

संघीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान भी 1935 के अधिनियम में ही किया गया । 

इंग्लैंड के सम्राट के द्वारा न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति होनी थी । एक मुख्य न्यायाधीश और दो अन्य न्यायाधीशों की भी नियुक्ति होनी थी । इंग्लैंड की प्रिवी में इस न्यायालय के विरोध में अपील की जाती थी । 


6. भारतीय कौंसिल का अंत -

भारतीय कोंसिल का विरोध भारत में काफी जोर शोर से हो रहा था । जिसे देखते हुए भारत में भारतीय कौंसिल को समाप्त कर उसकी जगह सचिव के सलाहकारों को दी गई । जिसके सदस्यों की संख्या 6 थी।  


  [ 1935 अधिनियम का मूल्यांकन ] 


∆ यह अधिनियम 1919 के अधिनियम से कही ज्यादा बेहतर साबित हुआ था । और इसके तहत भारतीयों को कई सुविधाएं भी दी गई थी । 


1. प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति , मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी,द्वैश शासन प्रणाली का अंत , विधान सभाओं के सदस्यों की संख्या में वृद्धि , इसके प्रमुख गुण थे । लेकिन इन्ही गुणों के साथ ही इन अधिनियम में कई दोष भी थे जैसे -

1- केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना हुई जो की असफल साबित हुई। 

2- प्राँतो में व्वायत्त शासन की स्थापना की गई । लेकिन गवर्नरों के अधिकारो के कारण यह व्यवस्था भी असफल रही । 

3- सांप्रदायिक चुनाव पद्धति का लागू किया जाना। जो की भारतीयों के विरोध के कारण सफल न हो सकी । 

4- देशी रियासतों को अधिक महत्व दिया जाना । 

5- जनतांत्रिक शासन पद्धति की उपेक्षा किया जाना । 

6- संघीय न्यायालय को सीमित अधिकार ही प्राप्त थे ,इस आशियां के तहत न्याय की सर्वोच्च संस्था इंग्लैंड की संसद थी 

7- भारतीयों पर अंग्रेजी सरकार का पूर्ण रूप से नियंत्रण था। और उच्च पदों पर भी अंग्रेज की नियुक्त किए जाते थे।

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