भारत में राष्ट्रवाद का उदय
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भारत में राष्ट्रवाद का उदय
भारत में पुनः राष्ट्रवाद का विकास
• राष्ट्रवाद और भारतीय परिस्तिथियो की चर्चा करते है तो हमे फिर से ज्ञात होता है की , भारत पे विभिन्न यूरोपियन जनजातियों की नजर थी , व्यापारिक होने के साथ साथ प्रशासकीय भी थी , अपितु यूरोपियन जातियां ब्रिटेन , फ्रांस , इटली , डच , पुर्तगाली आदि , भारत पे साम्राज्य स्थापित करने में लगे थे , कुछ केवल व्यापार करना चाहते थे तो कुछ शासन । इसी प्रकार भारत का इतिहास लंबा और गहरा होता गया ।
• 18 वी शताब्दी के अंत से अर्थात 19 वी शताब्दी के प्रारंभ से भारत में सामाजिक , राजनीतिक , धार्मिक , के विषय संबंध में अंधविश्वास और मतभेद व्याप्त था ।
इसका परिणाम ये था की इन मतभेदों के कारणवश भारतीय राष्ट्रीयता घटती जा रही थी । परंतु भारत में कुछ ऐसे तत्वों का विकास होने लगा जिसके परिणामस्वरूप भारत को राष्ट्रता की भावना बढ़ने लगी थी , अंग्रेजो और विभिन्न यूरोपियन जातियों का भारतीयों के साथ व्यहवार और व्यापारिक नीतियां आदि भारतीय राष्ट्रीयता को पुनः व्यवस्थित करने का एक महत्वपूर्ण तत्व था ।
∆ 1857 वह विशेष विधि है जब भारतीय राष्ट्रीयता की भावना और भारतीयों की एकजुटता प्रबल होके एकीकरण से अंग्रेजो के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ी थी ।
∆ 1857 से 1885 तक विभिन्न घटनाओं से अवगत और जागरूक भारतीय जनता और भारतीय सरकार त्रिवता से संपूर्ण प्रदेश के सभी कोनो में आंदोलन छेड़ती जा रही थी ।
[ राजनीतिक दल व संगठन ]
✓ भारत की अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ाई में सबसे बड़ी राजनैतिक शक्ति " भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस " थी , परंतु भारत के राजनैतिक इतिहास में कांग्रेस से पूर्व भी अनेक राजनैतिक दल थे जो स्वतंत्रता के लिए विशेष निर्णय और नीतियों का निर्माण कर भारतीय राष्ट्रीयता को बढ़ावा दे रहे थे ।
1. पूना सार्वजनिक सभा (1870)-
• प्रमुख नेता - महादेव गोविंद रानाडे
• इस सभा ने कौंसिल सदस्यों के चुनाव की मांगे की।
• जनता को शिक्षित करने तथा सरकार का ध्यान भारतीय अर्थ -व्यवस्था की ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से यह सभा स्थापित की गई थी ।
2. ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन (1851) -
• पहले अध्यक्ष - राधा कांत देव तथा सचिन देवेंद्र नाथ ठाकुर ।
• इसी एसोसिएशन के भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों किं मांग की गई थी । क्षण
• यह सभा भारत में ब्रिटीश प्रशासन के विषय मे भारतीय जनता की भावनाओ से ,इंग्लैंड की जनता को अवगत कराना इस सभा का मुख्य उद्देश्य था।am
• प्रमुख मांगे (1853) - विश्वविद्यालयों की स्थापना, विधान परिषदों का पुनर्गठन , भारतीयों की उच्च सेवाओं में नियुक्ति।
• इस संस्था की स्थापना उच्चवर्गीय जमींदारों तथा मध्यम वर्ग के आंदोलनकारियों के द्वारा की गई थी ।
3. जमींदार सभा( 1838) -
• इसकी स्थापना कलकत्ता के जमींदारों के द्वारा की गई थी।
• प्रमुख उद्देश्य - सरकार द्वारा भूमि खंडों के अधिकार पर रोक ।
4. मद्रास नेटिव एसोसिएशन (1853) -
• प्रमुख उद्देश्य - न्याय व्यवस्था,शिक्षा की कमी ,कर पद्धति इत्यादि में सुधार ।
• इस संसद ने इंग्लैंड की संसद का ध्यान मद्रास प्रांतियों की समस्याओं और अभावों की ओर केंद्रित किया ।
5. महाजन सभा (1884) -
•इसकी स्थापना हिंदू नमक समाचार पत्र के संस्थापकों के द्वारा की गई थी।
• प्रमुख मांग - नागरिक परीक्षा, न्याय और राजस्व को अलग करने की आलोचना, सेना पर हो रहे व्यय, लेजिस्लेटिव कौंसिल में सुधार।
6. साधारण ज्ञान सभा (1838) -
• इस सभा के अंतर्गत राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक मामलों में विचार विमर्श होता था ।
• ये मामले समाचार - पत्रों की स्वतंत्रता, जूरी द्वारा मुकदमों के फैसले, सरकारी विभागों में बेगार आदि थे।
7. ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी (1843) -
• प्रमुख उद्देश्य - देश में कानून, संस्थाओं और साधनों के बारे में सूचना एकत्र करना ,देश की स्थिती, देशहित के कार्य करना ।
8. इंडियन एसोसिएशन (1875) -
• इसकी स्थापना इंडियन लीग के स्थान पर कलकत्ता में हुई थी ।
• मुख्य उद्देश्य - जनता को सार्वजनिक आंदोलन में शामिल करना,जन -जागृति उत्पन्न करना, हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना , नाना प्रकार के जनजातियों के लोगो को देशहित में संगठित करना ।
• इस संस्था ने सिविल परीक्षा में बैठने की उम्र 21 से घटाकर 19 करने का बहुतायत ही विरोध किया ,जिसके अतिरिक्त शस्त्र अधिनियम और वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम का भी विरोध हुआ।
9. बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन ( 1885) -
• संस्थापक -बदरुद्दीन तैयबजी , टी. के. तेलंग, फिरोजशाह मेहता।
• प्रमुख उद्देश्य -राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना, जनता के विचारो को सरकार तक पहुंचना ।
10. इंडियन लीग (1875) -
• इसकी स्थापना बंगाल में हुई थी ।
•प्रमुख उद्देश्य - राष्ट्रवादी भावनाओ का व्यापक प्रचार, राजनीतिक चेतना को भारत में जागृत करना ।
∆ निष्कर्ष :
• भारत में राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन देने में इन स्थानीय प्रांतीय राजनैतिक दलों को भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण थी। जब स्थानीय प्रांतीय राजनैतिक दल अंग्रेजो के विरुद्ध जोर पकड़ते हुए भारत में राष्ट्रयेता को प्रोत्साहित कर रहे थे , धीरे धीरे इन स्थानीय प्रांतीय राजनैतिक दल अंग्रेजो के विरुद्ध एकीकरण करते हुए कांग्रेस से जा मिले और भारतीय जनता का सहयोग कांग्रेस सरकार को प्राप्त हुआ जिसके परिणाम से राष्ट्रवादी एकता शक्ति स्थानीय प्रांतीय न होके भारतीय राष्ट्रीयता में परिवर्तित हो गई ।
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