अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

भारत सरकार अधिनियम 1858 ई० | Bharat Sarkar Adhiniyam 1858 in Hindi

भारत सरकार अधिनियम 1858 ई०| Bharat Sarkar Adhiniyam 1858 in Hindi 

महारानी विक्टोरिया 1858 घोषणा पत्र 

"1857 स्वतंत्रता संग्राम ", दिसंबर 31 , सन् 1600 की तिथि भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को ब्रिटेन महारानी विक्टोरिया से भारत में व्यापारिक सुविधा और अनुमति प्राप्त हुई थी । व्यापार के माध्यम से ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सत्ता स्थापित करने के लिए व्यापारिक शक्ति को बढ़ाते हुए भारत में साम्राज्य स्थापित करने का कार्य करना प्रारंभ किया था , ये वक्त कम्पनी का भारत पे नियंत्रण और साम्राज्य विस्तार का  कार्यकाल रहा था । चतुराई , कूटनीति , चल - कपट से अंग्रेजो ने प्रारंभ में भारतीयों को लूटना शुरू किया था , तत्पश्चात धीरे - धीरे  अंग्रेजो को भारतीयों की सभी कमजोर कड़ियों का ज्ञात हुआ तब ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में अपने व्यापारिक प्रभुत्व को मज़बूत करते हुए विभिन्न प्रांतों और राज्यों को अपने अधीन करा । 

भारत में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया प्रशासनिक शक्ति की स्थापना करने के लिए उत्सुक थी । भारतीयों के लिए कड़ी नीतियां बनाई गई और शोषण किया जाने लगा । 

• "प्लासी का युद्ध 1757 जब सिराज उद दौला " को अंग्रेजो ने युद्ध में परास्त कर बंगाल , मद्रास , कलकत्ता में कारखानों का निर्माण करा और पुर्ण रूप से व्यापारिक शक्ति को स्थाई रूप प्रदान करना प्रारंभ किया । प्लासी युद्ध  ही वह युद्ध था जिसके बाद से ईस्ट इण्डिया और अंग्रेज़ सरकार का भारत में प्रत्येक स्थान में किसी न किसी कृत्य के लिए विरोध होना प्रारंभ हो चुका था । 


ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भारतीय के विभिन्न भागों की स्तिथि असंतुलित कर दी, जिसके कारण भारत में अंग्रेजो के विरुद्ध 1857 में स्वतन्त्रता संग्राम व विद्रोह हुआ । 

• भारतीयों ने " आर्थिक , सामाजिक , धार्मिक , व्यापारिक , राजनैतिक और प्रशासनिक आदि अंग्रेज़ नीतियों के विरूद्ध  विद्रोह किया था । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के खिलाफ हुए इस  भारतीय संग्राम की चर्चा विश्व भर की एक प्रमुख घटना बन गई थी , अपितु इसका परिणाम अधिक  व्यापक रहा ।

1857 भारतीयों के इस विद्रोह की सूचना जब महारानी विक्टोरिया {ब्रिटेन} तक पहुंची तब भारत की स्तिथि असंतुलित होते हुए सोचनीय भी थी , अर्थात विक्टोरिया को विशेष रूप से भारत के लिए तत्काल निर्णय लेना बेहद जरूरी हो चुका था । 


1858 में विक्टोरिया ने घोषणा करी और इस घोषणा के अनुसार भारत के लिए विशेष निर्णय लिया ।

∆ इलाहाबाद 1 नवंबर 1858 एक समारोह को आयोजित कर  भारत में विक्टोरिया का घोषणा पत्र को प्रस्तुत किया गया ।

भारत के प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग ने इस पत्र को समारोह में पढ़ कर भारतीयों के समक्ष प्रस्तुत किया । 


= घोषणा पत्र में लिखित प्रावधान आश्वासन 


भारतीयों द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी साथ की गई सभी " संधि और समझौते " ब्रिटेन संसद में मान्य । 


भारतीयों को शासन के उच्च पद पे नियुक्ति बिना पक्षपात । 


भारत के धार्मिक मामलों पे अहस्तक्षेप की नीति ।


शांति  स्थपित कर , सार्वानिक हित के कार्य को प्रोत्साहन देंगे । 


भारतीयों के संबंध में नियम और कानून का निर्माण परंपराओं को ठेस न पहुंचे हुए किया जायेगा । 


    [ 1858 के अधिनियम की मुख्य धाराएं ]

1. इस अधिनियम के तहत -

 • ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को पूरी तरह से खत्म कर , 

  भारतीय शासन से संबंधित सभी अधिकारों  सहित कंपनी की सेना को पूरी तरह से इंग्लैण्ड  को दे दिया। अर्थात् ,

स्पष्ट रूप से यह घोषणा कर दी गई की अब साम्राज्ञी के नाम से ही भारत पर प्रशासन किया जाएगा । 


2. इस अधिनियम के तहत - 

• भारत में प्रशासनिक अधिकारी को "गवर्नर जनरल" के स्थान पर अब "गवर्नर-जनरल तथा वायसराय" की संज्ञा दी गई । 

प्रांतीय गवर्नरों की नियुक्ति हेतु गर्वनर-जनरल को अंग्रेजी ताज की स्वीकृति लेना अनिवार्य था। 


3. इस नियम के तहत -

"भारत सचिव"  के पद का सृजन, निर्देशकों तथा नियंत्रण मंडल के पद से स्थानांतरित किया गया। 

भारत सचिव का कार्यालय लंदन में ही रहा।


4. इस नियम के तहत -

• परिषद (काउंसिल) की स्थापना भारत सचिव की सहायता के उद्देश्य से की गई। 

इनके सदस्य की संख्या 15 थी। 

इनमे 8 सदस्यों को ‌‍‍‌‍‍‍ साम्राज्ञी द्वारा मनोनीत किया जाना था। 


5. इस नियम के तहत -

अब  भारत सचिव पर ही भारत के सम्पूर्ण निर्देशन तथा निरीक्षण का उत्तरदायित्व हो गया था।


6. इस नियम के तहत -

भारत राजस्व से ही भारत सचिव और कार्यालय का खर्चा उपार्जित होना था । 


7. इस नियम के तहत -

• भारत सचिव के लिए यह अनिवार्य था की वह भारतीय प्रगति का हिसाब- किताब ब्रिटेन संसद के समक्ष प्रस्तुत करे।


8. इस नियम के तहत -

किसी भी बाहरी आक्रमण के अलावा किसी अन्य युद्ध की स्थिति में ब्रिटेन संसद की अनुमति अनिवार्य थी।

भारत में  किसी भी युद्ध की स्थिति में , अंग्रेजी संसद को तत्काल में सूचना देना भारत सचिव का दायित्व था । 


9. इस नियम के तहत -

भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं से ही लोक सेवाओं की नियुक्ति किए जाने का निश्चय किया गया। 

केवल भारत मंत्री को ही इसके संबंध में कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया । 


10. इस नियम के तहत -

अंग्रेजी ताज को ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा मानी गई सभी संधियां  मान्य होगी।


       [ 1858 अधिनियम की आलोचना ] 


✓ भारतीय सचिव से  भेदभाव किया जा रहा था , अर्थात अंग्रेज सरकार सिर्फ भारतीय सचिव और उसके कार्यालय का खर्च भारतीय रियासत से वसूला जा रहा था ,  इस तर्क से इस अधिनियम को आलोचित किया गया था ।

प्रशासन से भारतीय को दूर रखने का कार्य ब्रिटेन सरकार कर रही थी । 

पद को शक्ति अर्थात भारतीय सचिव को इतनी अधिक शक्तियां प्रदान करी गई थी की इन शक्तियों से सचिव अपने स्वार्थ को पूर्ति करने लगे थे ।

ब्रिटेन संसद सचिव कभी भी भारतीयों के विषय में कोई वार्ता नही करती थी ना की कोई बैठक बुलाई जाती थी , इसका कारण यही था की सचिव को कार्यभार सौंपा गया हुआ था और उसी के फैसले पे संसद विश्वास कर , भारतीयों के हित और आवश्यकताओं पे रुचि नहीं दिखाती  थी ।


         [ 1858 अधिनियम में व्याप महत्व ] 

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भारतीयों पे से शासन समापन से भारतीय जनता संतुष्ट थी और उनके अब अपनी रियासतों के छीने जाने का भए न था ।

इसके तहेत " दोहरी प्रशासन की वयवस्था" का अंत कर दिया गया था । 

भारतीय सचिव की नियुक्ति और कार्यकारिणी परिषद की स्थापना से भारतीय प्रशासन में सुधार आया था ।

भारतीय रियासत और ब्रिटेन संसद के बीच संबंध स्थापित होना प्रारंभ होगा था ।


∆ निष्कर्ष - 

✓ भारत सरकार अधिनियम 1858 ई० की भारत में अधिक विशेषता रही थी , परंतु जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते है उसी प्रकार अंग्रेज सरकार की इस नीति / अधिनियम के भी दो पहलू स्पष्ट हुए , "प्रशासन मे विभिन्न सुधार हुए और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दुष्टकरमों का पर्दा फाश हुआ , भारतीयों पे से ईस्ट इण्डिया कम्पनी की अत्याचारी नीतियों का अंत हुआ "। 

✓ दूसरी दिशा में कई असंगत और तर्क विहीन कार्य किए गए, " सचिव को अधिक शक्ति प्राप्त , भारतीयों को प्रशासन से दूर करना , आदि कार्यों से 1858 के अधिनियम को आलोचित भी किया गया " ।


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