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अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

क्यों अपकृत्य विधि भारत में विद्यमान नही ?

   [ क्या है अपकृत्य विधि ]  • विधि के द्वारा ही समाज में जीवन को सुव्यवस्थित करना संभव होता है , वर्षो से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सुव्यवस्था कायम करने के लिए नियम व विधि का निर्माण हुआ था । विधि द्वारा जीवन के सभी क्षेत्रों को संहिताबद्ध करके प्रत्यक कृत्य को क्रियावत करने का एक सर्वमान्य लोक हित नियम का सृजन करा जाता है । विधि का गहन अध्ययन विधिशास्त्र में होता है और इसका निर्माण , स्वरूप , विशेषता , गुणनात्मक व्याख्या करने वाले विधिशास्त्रीय कहलाते है ।  • संविधानिक रूप मे भारत का संविधान विभिन्न राष्ट्रों के सविधान से संबंधित है और इसी कारण भारत का संविधान और भारतीय विधि में कई राष्ट्रों के विधि और न्याय व्यवस्था का लेख प्राप्त होता है ।    • भारतीय अपकृत व्यवस्था इंग्लैंड अपकृत्य विधि के तत्व , तथ्य से आधारित है फ्रेंच में इसका अर्थ " गलत " कहा जाता है, इसलिए भारतीय और इंग्लैंड अपकृत्य विधि कुछ समानताएं भी है और कुछ मतभेद भी व्याप्त है।  • 1926 में बम्बई, कलकत्ता और मद्रास में जिस न्यायालय पुनर्गठन किया गया था वो सब अंग्रेजी न्यायालय ...

लॉर्ड कार्नवालिस के सुधार

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      लॉर्ड कार्नवालिस के सुधार                 [ लॉर्ड कार्नवालिस ]  • भारत के इतिहास में गवर्नरों का वर्णन अवश्य देखने को मिलता है , 1757 से 1765 तक भारत और अंग्रेजी व्यपारियो से संबंध में कई युद्धों का वर्णन मिलता है जिससे  पता चलता है कि किस रूप में अंग्रेजी व्यापारी भारत तक पहुंच के व्यापार से प्रशानिक शक्ति का निर्माण करे थे । • भारत के इतिहास में कई गवर्नर जनरल हुए और मुख्य रूप से प्रसिद्ध गवर्नर जनरल की ख्याति लॉर्ड कार्नवालिस ने अपने सुधार और नीतियों से प्राप्त की। • 1786 भारत में शक्ति स्थापना और शासन को अधिक शक्ति प्रदान करने के लिए, भारत में अंग्रेजी शासन पुनः स्थापित करने के लिए कार्नवालिस को गवर्नर जनरल के पद पर नियुक्त कर भारत भिजवाया गया ।  • भारत पहुंच कर कार्नवालिस ने भारत की तत्कालीन व्यवस्था का मापदंड कर नीतियों का निर्माण करना प्रारम्भ किया । व्यक्तित और दृष्टिकोण के अनुसार कार्नवालिस एक ईमानदार , सुलझा , समझदार गवर्नर था , कार्नवालिस नीतियों के भावी परिणाम की जानकारी प्राप्त कर के ही क...

भक्ति आन्दोलन का इतिहास | Bhakti Andolan Ka Itihaas in Hindi

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   भक्ति आन्दोलन का इतिहास | Bhakti Andolan Ka Itihaas in Hindi                  ∆ भक्ति की शुरुआत कहा से हुई ?   • अर्थ - ' भज् ' धातु से बने भक्ति शब्द का अर्थ है - सेवा ।  •  परिभाषा - " ईश्वर के चरणों में पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण कर देने एवं ईश्वर में पूर्ण रूप से अनुरक्त हो जाना ही भक्ति कहलाता है। "  ✓ भक्ति का उद्गम भारत देश में ईसाई धर्म के आने के साथ साथ हुआ ,इसका कारण यह था की भक्ति को जो मोक्ष का साधन कहलाती है , वह विदेशी प्रभाव के कारण ही है । • भक्ति आंदोलन के बारे में डाॅ. ग्रियर्सन लिखते है की - " बिजली की चमक के समान अचानक इन समस्त पुराने धार्मिक मतो के अंधकार के ऊपर एक नई बात दिखाई दी । कोई हिंदू या नहीं जानता कि यह बात कहां से आई और कोई भी इसके प्रादुर्भाव का कल निश्चित नहीं कर सकता" • डॉक्टर सेनार्ट के अनुसार - भारत में ही शक्ति अस्तित्व में आई ।   • वैदिक साहित्य में भी इसके प्रमाण उपलब्ध हैं।  • कई विद्वानों ने इन मतों को स्वीकार किया है और माना है की भक्ति का उद्गम...

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1935 भारत सरकार अधिनियम की विशेषताएं

1935 भारत सरकार अधिनियम की विशेषताएं        [ 1935 का भारत सरकार अधिनियम ]  ∆ भारत सचिव लॉर्ड ब्रेकनहेड ने साइमन कमीशन का भारतीयों के द्वारा विरोध किए जाने पर ,भारतीयों को एक सर्वमान्य संविधान बनाने की चुनौती दे दी ।  • भारतीयों ने इसे स्वीकार कर एक समीति का गठन किया जिसमे सदस्यो की संख्या 8 थी और इसके अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरु ने ली । इस समिति के द्वारा जो रिपोर्ट तैयार की गई थी वह "नेहरु रिपोर्ट" कहलाई। ∆ इसी बीच सन् 1932 में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री मेकडोनल्ड के द्वारा "सांप्रदायिक समझौता" की घोषणा हुई । इसके अंतर्गत हिंदू मुसलमानों के बीच मतभेग और संप्रदायो की एकता को खत्म करने का प्रयास किया गया था ।  • महात्मा गांधी ने इसका विरोध आमरण अनशन द्वारा किया था और इसके पश्चात "पूना समझौता"  के जरिए इसे वापस ले लिया गया ।  ∆ भारत के भावी संविधान की रूपरेखा पर हुए विचार विमर्श को "श्वेत पत्र"  में रूप में प्रकाशित किया गया था । जो की लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलनों में इंग्लैंड की सरकार द्वारा प्रकाशित हुआ था । ...

1861 भारत परिषद अधिनियम की धाराएं

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  1861 भारत परिषद अधिनियम की धाराएं  1861 का भारत परिषद अधिनियम  परिचय  इस अधिनियम के पारित होने के बावजूद भी भारतीय शासन पद्धति में कई दोष थे , जिनका उपाय किया जाना अत्यंत ही आवश्यक था , इनमे से कुछ प्रमुख दोष इस प्रकार थे  - 1- 1858 के अधिनियम के द्वारा केवल उन निर्देशन और आदेशों में ही परिवर्तन हुआ जो की इंग्लैंड से होते थे तथा भारतीय असंतुष्ट थे , व सुधार करना चाहते  थे इसका कारण यह था की इस अधिनियम का भारतीय प्रशासनिक प्रणाली पर कुछ खास असर नहीं पड़ा था। 2 -  1857 की क्रांति ने इस बात को स्पष्ट कर दिया की भारतीय संवैधानिक प्रणाली से भी नाखुश थे , तथा उसमे संशोधन चाहते थे । भारतीय संवैधानिक प्रगति करने के लिए ,भारतीय संविधान सभा की सदस्यता चाहते थे। परंतु 1858 के अधिनियम के कारण भारतीय इस अधिकार से वंचित रह गए ।  • 1858 में इंग्लैंड की संसद में यह मामला उठाया गया । लेकिन जहां एक ओर ग्लेडस्टन यह कहकर ऐसा करने से इनकार किया की : "जब भारत का एक बड़ा भाग अभी भी अंग्रेजो का विरोध कर रहा है तो ऐसे भारतीयों को प्रतिनिधित्व प्रदान करना उचित नहीं...

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