अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास
∆ परिचय
• 1206 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की नींव डाली गई थी , जिसके पश्चात दिल्ली एक सल्तनत के रूप में स्थापित हो गई थी । दिल्ली सल्तनत का विकास 1206 से 1290 ई० तक कुतुबुद्दीन , इल्तुतमिश और बलबन जैसे सेनानायक के शासन में हुआ था ।
• जलालुद्दीन खिलजी ने 1290 ई० में गुलाम वंश के आखिरी शासक बलबन के पुत्र बुगराखन के पुत्र "केकुबाद" की हत्या कर "खिलजी वंश" की स्थापना की थी ।
• जलालुद्दीन खिलजी ने दिल्ली पर मात्रा 6 वर्ष शासन किया था और अलाउद्दीन (उसका भतीजा ) ने उसकी हत्या कर के खुद को सुल्तान घोषित कर लिया था ।
∆ अलाउद्दीन का प्रारंभिक जीवन
• अलाउद्दीन खिलजी सन 1266 ई० में भारत में ही जन्मा था और उसके युवावस्था में दिल्ली सल्तनत का शासक उसका चाचा जलालुद्दीन खिलजी था ।
• अलाउद्दीन खिलजी राजकीय माहौल में पला - बढ़ा हुआ था इसलिए उसके व्यक्तित्व में साधारण जीवन जीने की इच्छा न थी वह सुल्तान बनने , योग्य होने , शक्तियुक्त होने की इच्छा रखता था ।
• युवावस्था में जब वो सुल्तान जलालुद्दीन के पद, शक्ति , और राजदरबार की शान शौकत देखता था तो उसके मस्तिष्क में शीघ्र ही सुल्तान बनने की कामना तीव्र होने लगती थी ।
• 1291 ई० में "कड़ा मानिकपुर" का सूबेदार "मलिक छज्जू" ने जलालुद्दीन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया , जिसके पश्चात अलाउद्दीन को मलिक छज्जू के पद पर नियुक्त किया गया , अर्थात अलाउद्दीन को प्रथम बार किसी शक्तिशाली पद पर कार्य करने का अवसर मिला जिसका अलाउद्दीन के बेहद योग्यता से उपयोग किया ।
[ अलाउद्दीन खिलजी की महत्वाकांक्षा ]
• कड़ा मानिकपुर का सूबेदार बनने के पश्चात अलाउद्दीन को जलालुद्दीन द्वारा "अमीर ए तुजक" पद से भी नवाजा गया था ।
• कड़ा मानकीपुर की जनता , सेना , अमीर और साधारण वर्ग अलाउद्दीन के समक्ष सिर झुकाते थे , सम्मान करते थे , उसके आदेश को स्वीकार करते थे तत्पश्चात अलाउद्दीन ने अनुभव किया की शासक की ज्योति , गरिमा , सम्मान एवं शक्ति के क्या मायने होते है ।
• अलाउद्दीन अपने पद से प्रभावित होने के कारण महत्वाकांक्षी होने लगा और धीरे धीरे वह अपनी शक्ति विस्तार के लिए योजनाएं बनाने लगा ।
• 1292 ई० में अलाउद्दीन ने अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए मालवा पर कुशल अभियान किया और भिलसा के दुर्ग पर आक्रमण कर धन लूटा । अलाउद्दीन अपनी शक्ति के विस्तार के लिए जलालुद्दीन से ज्यादा धन एकत्रित करना चाहता था और इसलिए जलालुद्दीन की अनुमति के बिना ही कई स्थानों पर अभियान प्रारभ कर दिए थे ।
• 1294 ई० में अलाउद्दीन ने धन प्राप्ति के लिए देवगिरि पर अचानक आक्रमण कर दिया और राजा रामचंद्रदेव को आत्मसमर्पण करने के लिए विवश कर दिया ।
∆ अलाउद्दीन द्वारा जलालुद्दीन से विश्वासघात
• जब जलालुद्दीन खिलजी सुल्तान बना था तब वो अलाउद्दीन खिलजी पर पूर्ण विश्वास करता था अर्थात इसी विश्वास के चलते अलालुद्दीन को उसने अमीर - ए - तूजक पद के साथ साथ कड़ा मानिकपुर का सूबेदार घोषित किया था ।
• अलाउद्दीन खिलजी कड़ा मानिकपुर का सूबेदार बनने के पश्चात अत्यधिक महत्वाकांक्षी हो गया था वो अपने ऊपर जलालुद्दीन के भरोसे , एहसान एवं रिश्ता नाता उसके लिए उसकी महत्वाकांक्षी नेत्रों के समक्ष उन्देखे थी ।
• 1296 ई० अलाउद्दीन खिलजी ने जलालुद्दीन खिलजी को देवगिरि से प्राप्त धन सौंपने के लिए और माफी मांगे के लिए की "उसने बिना आज्ञा के देवगिरि पर अभियान किया " कड़ा मानिकपूर्ण आने का आमंत्रण भेजा । जलालुद्दीन जब कड़ा मानिकपुर आया तब अलाउद्दीन उसके साथ अकेले में बात चीत करने के लिए उसको नाव पर ले गया और धोखे से जलालुद्दीन की हत्या कर खुद को 19 जुलाई दिल्ली सल्तनत का शासक घोषित कर लिया ।
∆ अलाउद्दीन खिलजी का विधिक सुल्तान घोषणा
• अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं को सुल्तान घोषित तो कर लिया था अपितु वो दिल्ली का स्वतन्त्र सुल्तान स्वीकृत नहीं हो सका था ।
• जलालुद्दीन की पत्नी मलिका - ए - जहान ने अपने पुत्र को दिल्ली सल्तनत का स्वतन्त्र सुल्तान घोषित कर दिया था अर्थात कद्रखान रुकुद्दीन नाम से शासन पर आसित हुआ था ।
• अलाउद्दीन ने रुकुद्दीन पर अचानक अपनी सेना साथ शक्तिशाली आक्रमण कर दिया जिसके कारणवश रुकुद्दीन को अपनी सत्ता बचाने के लिए अपने भाई अर्काली खां आदि को आवश्यकता पड़ी परंतु अर्काली खां रुकुद्दीन से प्रसन्न न था क्योंकि वो स्वयं ही सुल्तान बनना चाहता था इसलिए उसके रुकुद्दीन की सहायता न की और अलाउद्दीन के भय से रुकुद्दीन भाग गया ।
• इस प्रकार 3 अक्टूबर 1296 ई० को अलाउद्दीन विधिक रूप से दिल्ली सल्तनत का शासक व सुल्तान घोषित हुआ ।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें