अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

पानीपत का युद्ध in hindi

पानीपत का युद्ध in Hindi 

परिचय 

• पानीपत का युद्ध 1526 में दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान इब्राहिम और बाबर के मध्य एक भयानक युद्ध हुआ जिसने दिल्ली की काया ही बदल दी । इब्राहिम लोदी लोदी वंश का अंतिम शासक था , उसके कार्यों से दिल्ली सल्तनत के विभिन्न स्थानीय शासक नाखुश थे अर्थात बाबर को इब्राहिम को परस्त कर दिल्ली पर अधिकार करने का आमंत्रण इब्राहिम लोदी के चाचा द्वारा प्राप्त हुआ । 
पानीपत का युद्ध पानीपत नमक मैदान में इब्राहिम लोदी और बाबर का युद्ध हुआ जो इतिहास का सबसे लोकप्रिय युद्ध हुआ था क्योंकि बाबर की इब्राहिम पर विजय से युद्ध में अनेक ऐसी वार्ताएं शामिल की थी जो इतिहास में योग्यता और साहस का एक महत्वपूर्ण उदाहरण थी ।

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इब्राहिम लोदी बनाम बाबर ( पानीपत का युद्ध ) 

इब्राहिम लोदी स्वयं को सर्वशक्तिमान बनाने के उद्देश्य से सैनिक अभियान को गति प्रदान करने का कार्य कर रहा था इस लिए उसने मेवाड़ पर आक्रमण कर वहा के तत्कालिन शासक को परास्त करके राणा सांगा को परस्त कर अपने वंश का भारत में विस्तार करता जा रहा था ।  

• इसी बीच तैमूर वंशीय बाबर भारत के पंजाब राज्य पर अधिकार करने के उद्देश्य से अभियान को क्रियावंतित कर रहा था , बाबर भी अन्य प्रांतों एवं अन्य प्रांतों के शासकों के समान दिल्ली पर अपना अधिकार करना चाहता था । क्योंकि दिल्ली एक विशाल साम्राज्य बन चुकी थी जिसमें अधिकार करके वह संपूर्ण भारत का सुल्तान बनना चाहता था । 

• बाबर ने दिल्ली के लोदी वंशीय इब्राहिम लोदी की शक्तियों का अध्ययन किया , इसी के चलते उसे यह स्मरण हुआ की वह दिल्ली जैसे विशाल साम्राज्य को बिना किसी स्थाई एवं पूर्व नियोजित नीति के बिना अधिकार व किसी भी युद्ध को जीतने के लिए असमर्थ होगा । इसी बीच बाबर ने भारतीय सरदारों से संबंध बनाने का प्रयास किया एवं इब्राहिम लोदी की सभी कमियों की जांच की , जिसके पश्चात उसे यह समझ आया की इब्राहिम के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अपनी सैनिक नीतियों में परिवर्तन करना होगा , अर्थात बाबर को बल के बजाय बुद्धि के उपयोग से परास्त करने की नीति बनानी पड़ेगी । 

• बाबर ने अपने पुत्र हुमायूं को पानीपत के युद्ध में शामिल किया। बाबर इस युद्ध को जीतने के लिए अत्यधिक प्रयत्नशीलता साहस एवं बुद्धि का उपयोग करता हुआ सरहिंद और अंबाला से गुजरते हुए इब्राहिम के विरुद्ध आक्रमण हेतु दिल्ली आ पहुंचा । और युद्ध की घोषणा कर दी।

• इसी वक्त बाबर मेवाड़ की विजय का मनोरंजन मना रहा रहा था और अपने सैनिक अभियान को गति प्रदान करने के लिए अनेक सैनिक नीतियों का निर्माण कर रहा था। इसी बीच बाबर ने उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी वह दिल्ली के समीप आ पहुंचा , जिसकी सूचना इब्राहिम को अपने सैनिकों द्वारा प्राप्त हुई एवं तत्काल उसने भी बिना किसी देरी के बाबर को परास्त करने के लिए एक शक्तिशाली सेना बाबर के विरुद्ध भिजवा दी। 

• बाबर की सेना का सामना करने के लिए इब्राहिम अपने सैनिकों के साथ दिल्ली के समीप पहुंचा । इब्राहिम और बाबर की सेनाएं दिल्ली से 90 किलोमीटर की दूरी पर पानीपत नामक स्थान पर एकत्रित हुई।

• पानीपत का युद्ध हरियाणा का एक ऐतिहासिक शहर था जहां पर दिल्ली सल्तनत के अंतिम शासक लोदी वंश का इब्राहिम लोदी और चग़ताई वंश का बाबर एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध करने के लिए एकत्रित हुए । 

• इब्राहिम और बाबर की सेना एक दूसरे की छाती से छाती तान पानीपत के मैदान के मध्य खड़ी थी । दोनों ही दल युद्ध की शुरुआत का इंतजार कर रहे थे,  अभी भी दोनों ही पक्षों में प्रथम वार करने का साहस नहीं हो रहा था । 

• इतिहासकारों का मानना है कि यह दोनों सेनाएं अप्रैल 12 से अप्रैल 18 अर्थात एक सप्ताह बिना युद्ध के आमने-सामने बनी रही थी । 

1526 अप्रैल 19 की रात की बात है बाबर ने लोदी को कूटनीति के सहारे रात्रि का सहयोग लेते हुए आक्रमण किया लेकिन इब्राहिम की सैनिक शक्ति बाबर की कूट नीति पर हावी रही इसका परिणाम बाबर के लिए असफलता का हुआ । 


∆ निर्णायक युद्ध - 

अप्रैल 21 को इब्राहिम ने बाबर की हरकत से क्रुद्ध होकर हमला कर दिया तत्पश्चात बाबर ने भी इब्राहिम के विरुद्ध युद्ध के लिए कदम बढ़ाए । इब्राहिम लोदी की सैनिक संख्या लगभग 50.000 से 1 लाख के बीच थी एवं दूसरी और बाबर की सेन लगभग 15.000 के आस पास थी । 

• बाबर जानता था कि इब्राहिम लोदी को वह आमने-सामने से परास्त नहीं कर सकता इसलिए उसने "तुलुगमा पद्धति "अपनाई जिसको इतिहास में त्रिपक्षीय नीति के नाम से जाना जाता है । 

• इस पद्धति के अनुसार बाबर ने इब्राहिम की सेना को तीन तरफ से घेर कर अर्थात प्रथम दिशा तोपों से तथा अन्य दो दिशाओं में तीरों से पूर्ण साहस व शक्ति से इब्राहिम को घेर लिया, और धीरे-धीरे इब्राहिम के सभी सैनिक ध्वस्त होने लगे । इब्राहिम लोदी की सैन्य बल बाबर के समक्ष घुटने टेकने को विवश हो गई । इसी के साथ बाबर ने इब्राहिम लोदी वह उसके हजारों सैनिक को पानीपत के भव्य मैदान में मौत के घाट उतार दिया । 


∆ विशेषताएं - 

1- भारत में प्रथम बार तोपों का प्रयोग इसी युद्ध में किया गया था ।

2- अपने विपरीत सेना से कम सैनिक होते हुए भी बाबर की जीत हुई ।

3- बाबर को अफगानों से भी सहायता प्राप्त हुई जबकि इसके विपरीत अफगानी इब्राहिम की सेना के विरुद्ध थे , जिसका फायदा बाबर ने उठाया । 

4- एडवांस तकनीकी ( तोपों ) का प्रयोग भारत में किया गया था, जिसका आभास भारतीय सैनिकों को जरा भी ना था भारतीय सैनिकों के लिए बाबर द्वारा तोपों का प्रयोग किया जाना अत्यन्त नया था । 

5- इब्राहिम के संबंधी भी बाबर के समर्थक थे । 

6- पूरे दिल्ली सल्तनत में इतना दूरदृष्टि से परिपूर्ण आक्रमण किसी भी शासक ने ना किया था,  बाबर ने भारतीय अभियान के पहले ही सारी तैयारी व सैनिक नीतियां बना ली थी जिसने संपूर्ण सल्तनत का नाश किया । 

पानीपत युद्ध के विशेष कारण -

(1) सुसज्जित सल्तनत : 

1200 के समय में दिल्ली एक साधारण राज्य था परन्तु 1206 में जब कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की तभी से दिल्ली एक विशेष राज्य हो गया अर्थात इल्तुतमिश ने सुल्तान बनने के पश्चात् दिल्ली को गुलाम वंश व भारत साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था । 

• दिल्ली का निर्माण गुलाम वंश की स्थापना से आरंभ हुआ जिसमें "बड़ी सेना , दुर्ग निर्माण , दुर्ग मरम्मत , राज्यकोष की वृद्धि , सीमा सुरक्षा आदि " , दिल्ली सल्तनत के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य बनना जाता गया । 

बलबन , जलालुद्दीन खिलजी , अलाउद्दीन खिलजी जैसे महत्वाकांक्षी शासकों ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाए रखते हुए दिल्ली को सबसे शक्तिशाली , विकसित और भव्य रूप प्रदान किया था । 

• इसलिए बाबर जब भारत आया तो उसकी महत्वाकांक्षा दिल्ली की ओर बढ़ती गई , यदि बाबर को स्वयं को भारत का सुल्तान बनना था तो उसके लिए दिल्ली पर अधिकार और सल्तनत का अंत करना आवश्यक हो गया था ।


(2) गुप्त सहयोग : 

• इब्राहिम लोदी से कई प्रांतीय और स्थानीय शासक नाखुश थे क्योंकि इब्राहिम ने उनके कई प्रांतों में आक्रमण करके उनको जबरदस्ती अपने अधीनस्थ किया था ।

• बाबर ने दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण या भारत साम्राज्य का सुल्तान बनने के लिए विचार भी नहीं किया था अपितु उसको स्वयं दिल्ली से सल्तनत के ऊपर अभियान करने का आमंत्रण प्राप्त हुआ जिसके बाद बाबर ने दिल्ली व भारत साम्राज्य का सुल्तान बनने का उद्देश्य बना लिया । 

पंजाब के गवर्नर दौलत खां और इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां इब्राहिम के शासन से बहुत असंतुष्ट थे और इब्राहिम के विरुद्ध युद्ध करने का अवसर खोज रहे थे , आलम खां ने बाबर की शक्ति को देखते हुए विचार किया कि यदि बाबर दिल्ली के विरुद्ध युद्ध करता है तो इब्राहिम को मात दी जा सकती है। 

• बाबर को आलम खां ने दिल्ली आने का आमंत्रण भेजा और बाबर को युद्ध में सहायता प्रदान करने का वायदा भी किया , बाबर ने विचार करते हुए इस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया अर्थात इब्राहिम के चाचा अलम खां ने दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण करने के लिए व इब्राहिम लोदी के विरुद्ध गुप्त सूचनाएं प्राप्त कराई । जिसके परिणामस्वरूप बाबर दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए कूंच कर सका ।


(3) बाबर का गौरवशाली व्यक्तित्व : 

• बाबर ने अपने जीवन में योग्यता, साहस और महत्वाकांक्षा के दम पर कई युद्ध जीते थे और मुगल शासन में उसका पद एवं सम्मान अत्यधिक उच्च था , बड़े- बड़े सरदार अमीर उसके आगे सर झुकाते थे । 

• बाबर का व्यक्तित्व और उसकी प्रतिष्ठा बहुत अधिक थी , इसीलिए बाबर यदि आलम खां के आमंत्रण को अस्वीकार करता तो उसके व्यक्तित्व में भय का दाग लग जाता की वह इब्राहिम के डर से दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण न कर सका । 

बाबर अपनी इज्जत सम्मान प्रतिष्ठा को घटाना नहीं चाहता था ।


                [ पानीपत युद्ध के परिणाम ] 

1. दिल्ली सल्तनत का अंतिम युद्ध :

• पानीपत का युद्ध इतिहास में भारत का ऐतिहासिक युद्ध था , क्योंकि दिल्ली पर अनेक प्रतिद्वंदी शासक ने आक्रमण करा था परन्तु पानीपत के युद्ध जैसा विनाशकारी यह प्रथम आक्रमण था क्योंकि इस युद्ध में भारत की 320 वर्ष लंबी सल्तनत का नाश कर दिया था । 1526 के बाद दिल्ली में कोई शासक न हुआ जिसने दिल्ली सल्तनत का उत्तराधिकार संभाला हो।

2. बाबर को अत्यधिक लाभ प्राप्ति :  

• सल्तनत के राज्यकोष को सबसे अधिक लाभ अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किए उत्तर दक्षिण अभियानों से हुआ था , उसकी बाजार नियंत्रण नीति ने दिल्ली सल्तनत के राज्यकोष को अपार धन आवृत्ति दी थी । हालांकि लोदी वंश सल्तनतकाल तक राज्यकोष उतनी अच्छी स्थिति में भी न था पर फिरभी राज्यकोष के साथ साथ भारत साम्राज्य की राजधानी दिल्ली एक बहुत समृद्ध स्थिति में थी । बाबर को दिल्ली सल्तनत से अपार धन ,सैनिक , घोड़े , हाथी , दास , सोना और चांदी आदि अत्यधिक मात्रा में प्राप्त हुआ था ।


3. नवीन शक्तियुक्त साम्राज्य स्थापना : 

• बाबर ने अपनी 1526 पानीपत का युद्ध पानीपत की भव्य विजय के साथ "मुगल साम्राज्य" की स्थापना की । इस साम्राज्य का बाबर ही पहला शासक था ।  उसने संपूर्ण राजधानी व भारत में अपना शासन स्थापित किया और दिल्ली की सल्तनत को हमेशा - हमेशा के लिए खत्म कर दिया, जिसके पश्चात् दिल्ली सल्तनत भारत का इतिहास बन के रह गई और बाबर दिल्ली का वर्तमान सुल्तान बन गया ।


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