अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

बंगाल का विभाजन क्यों हुआ

 बंगाल का विभाजन क्यों हुआ  

                   [ बंगाल विभाजन ] 

परिचय -

1857 के पश्चात से ही भारत मे अंग्रेजों के लिए आंदोलन की प्रक्रियाए निरंतर घटित होती ही रही थी , ईस्ट इंडिया कंपनी ने जो शोषण किया था और भारतीयों के साथ व्यवहार एवं दमनकारी नीतियों के उपयोग से समाज मे अत्यधिक घृणा को जन्म दिया था उसका असर 1858 के अधिनियम के पश्चात भी बना रहा था ।


1858 अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत भले ही कर दिया था और भारत का शासन ब्रिटेन संसद के अधीन कर दिया था , लेकिन भारत मे शासन करते हुए अंग्रेज सरकार ने भारतीयों के लिए कोई कार्य नहीं किया था , न भारतीयों की किसी मांग को पूरा किया था , भारत उम्मीद मे था कि ईस्ट इंडिया कंपनी के अंत होने के बाद अब सरकार उनकी समस्याओ का समाधान करेगी और उनकी मांगों को स्वीकार करेगी ।


• ब्रिटिश सरकार भारत को सदैव अपना गुलाम बनाए रखना चाहती थी इसीलिए अंग्रेज सरकार ने नवीन अधिनियमों को पारित कर कर के प्रशासनिक एवं कठोर नियमों से बांध कर भारतीयों को ‘ सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक व धार्मिक ’ , सभी स्वरूपों मे जकड़ लिया था ।


1909 , 1919 , 1935 आदि अधिनियमों को पारित करते हुए भारत पर प्रशासनिक एवं राजनीतिक शक्तियों का विस्तार किया था।


• अंग्रेज सरकार के विरुद्ध भारत के सभी संप्रदाय एकत्रित होकर आंदोलनों मे शामिल हो रहे थे , इसी बीच बंगाल मे अंग्रेजों के खिलाफ बाल गंगाधर तिलक के भाषण और उनकी पत्रिका ‘केसरी’ ने बंगाल मे स्वतंत्रता और अंग्रेजों की नीतियों के विरुद्ध आक्रोश को बढ़ावा दिया अर्थात परिणामस्वरूप बंगाल की जनता तेजी से सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रही थी , बंगाल एक बड़ी जनसंख्या वाला प्रांत था । 


1905 बंगाल विभाजन का ऐलान वॉयसरॉय “लॉर्ड कर्जन” द्वारा किया गया और घोषणा की गई की बंगाल को विभाजित करके मुस्लिम संप्रदाय के लिए एक पृथक प्रांत का निर्माण होगा 

बंगाल-का-विभाजन-क्यों-हुआ



            बंगाल विभाजन का कारण एवं उद्देश्य


 1. सांप्रदायिक एकता का अंत - 

• 1885 मे जब भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना हुई तब अंग्रेज सरकार के विरुद्ध भारतीयों की गतिविधियों ने जोर पकड़ा और जब पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं महात्मा गांधी के कार्यों से हिन्दू मुस्लिम स्वतंत्रता के लिए अंग्रेज सरकार के विरुद्ध एकता से आंदोलनों मे भाग लेने लगे तभी सरकार ने मुस्लिम संप्रदाय के लिए एक पृथक प्रांत निर्माण की घोषणा कर दी ।

 

2. जनसंख्या का घनत्व -

• बंगाल विभाजन के समय बंगाल प्रांत की जनसंख्या लगभग 8 करोड़ थी , यदि इतनी बड़ी संख्या मे सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन तेजी पकड़ता जाता और इसी प्रदर्शन मे अन्य प्रांत शामिल हो जाते तो सरकार की समस्याए बढ़ जाती , इसीलिए कूटनीति को अपनाते हुए अंग्रेज सरकार एवं कर्जन ने सांप्रदायिक भेद - भाव अर्थात हिन्दू - मुस्लिम मे फूट डालने के लिए बंगाल विभाजन का ऐलान कर हिन्दू विद्रोहियों के लिए मुस्लिमों को भड़काया की ‘हिन्दू नहीं चाहता की मुस्लिमों का एक प्रांत बने ।' इस प्रकार बंगाल की जनसंख्या मे हिन्दू मुस्लिम की एकता को नष्ट करने का कार्य कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने का प्रयास किया ।



3. अंग्रेजी सत्ता की स्थिरता - 

• अंग्रेज सरकार भारत पर अपना शासन कमजोर नहीं होने देना चाहती थी इसलिए कूटनीति का उपयोग कर बंगाल के जोर पकड़ते विद्रोह का दमन करना व बंगाल का विभाजन अति आवश्यक था । भारत मे लंबे समय से हिन्दू मुस्लिम संप्रदाय के मध्य असंतोष व्याप था उसी का उपयोग कर सरकार ने बंगाल विभाजन की नीति अपनाने का प्रयास किया था । 


                 बंगाल विभाजन के परिणाम


1. स्वतंत्रता आंदोलन की गति मे कमी -

 जैसे ही बंगाल विभाजन की घोषणा कर्जन द्वारा की गई , मुस्लिम संप्रदाय अंग्रेजों की नीति का शिकार हुआ , और हिन्दू मुस्लिम एकता मे रुकावट उत्पन्न हुई साथ - साथ भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के उद्देश्य मे सम्प्रदायिक स्वार्थ भी विद्यमान हो गया था , परिणामस्वरूप भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की शक्ति और क्रियाशीलता मे भी रुकावट उत्पन्न हुई ।


2. आक्रोश मे वृद्धि - 

हालांकि इसका परिणाम स्वतंत्रता के उद्देश्यों की पूर्ति मे सहायक रहा क्यूकि बंगाल विभाजन के ऐलान के बाद भारत का उदारवादी वर्ग उग्रवादी की दशा मे बढ़ने के लिए विवश हुआ , और इसी कारणवश भारत मे अंग्रेजों के प्रति इतना आक्रोश व्याप्त होने लगा की अंग्रेजों के लिए ‘एक नई विचारधारा , नई मानसिकता एवं नई आंदोलनकारी प्रक्रिया की स्थापना हुई’, अर्थात भारत के उदारवादी दल ने उग्रवादी दल मे परिवर्तन कर लिया ।


3. बंगाल का विभाजन  रद्दीकरण -

बंगाल विभाग से भारत मे विद्रोह इतना अत्यधिक फैलता जा रहा था की अंग्रेज सरकार के लिए ये घोषणा सरकार की सत्ता को घायल करने वाले कारणों को जन्म दे रही थी , इसी के चलते 1911 मे वॉयसरॉय लॉर्ड हार्डिंग पर उग्रवादी क्रांतिकारी ‘रासबिहारी बोस’ ने बम फेक हत्या का प्रयास किया था | सरकार ने आंदोलन के आक्रोश से भयभीत होके बंगाल विभाजन को रद्द करने का फैसला लिया , 1911 मे लॉर्ड हार्डिंग ने बंगाल का विभाजन  रद्द कर दिया ।




     

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