दिल्ली सल्तनत की विशेषताएं | Delhi Sultanate Ki Visheshtaye
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दिल्ली सल्तनत की विशेषताएं
परिचय
• भारत में जब हम किसी भी राज्य का अध्ययन करते है तब दिल्ली सल्तनत का अध्ययन भारत के इतिहार का आवश्यक विषय है ।
• दिल्ली हमारे वर्तमान भारत की राजधानी भूतकाल से ही रही है , इसलिए दिल्ली सल्तनत का अध्ययन हमें दिल्ली का राजधानी होने का विशेष तथ्य भी ज्ञात कराता है ।
दिल्ली सल्तनत की प्रमुख विशेषताएं
1. विस्तृत इतिहास
• दिल्ली सल्तनत की प्रमुख विशेषताएं इसका अधिक विस्तृत होना है जो कि 320 वर्षों तक चला था ।
• सल्तनत काल में 5 वंशों ने दिल्ली पर शासन करा था ।
∆ गुलाम वंश [ 1206 - 1290 ई० ]
√ संस्थापक = कुतुबुद्दीन ऐबक
∆ खिलजी वंश [ 1290 - 1320 ई० ]
√ संस्थापक = जलालुद्दीन फिरोज खिलजी
∆ तुगलक वंश [ 1320 - 1413 ई० ]
√ संस्थापक = गयासुद्दीन तुगलक
∆ सय्यद वंश [ 1414 - 1451 ई० ]
√ संस्थापक = ख़ीज़्रखा
∆ लोदी वंश [ 1451 - 1526 ई० ]
√ संस्थापक = बहलोल लोदी
2. सुल्तान की क्षमता
• सल्तनत पर अपना प्रभुत्व बनाया रखना अत्यधिक कठोर कार्य था इसलिए सुल्तान की सल्तन्त का भविष्य उसकी योग्यता पर निर्भर करती थी ।
• भारतीय जनता हिन्दू धर्म और शासन तुर्की था जिसके परिणामस्वरूप जनता सुल्तान को नापसंद करती थी और सुल्तान जनता के लिए दमनकारी नीतियां उपयोग करता था ।
• किसी भी वंश का अस्तित्व उसके योग्य सुलतानों पर निर्भर करता था , यदि सुल्तान शासन पद्धति का तटस्था से पालन नहीं करता है तो अनेक प्रतिद्वंदी शासक के विरुद्ध विद्रोह कर देते थे ।
3. धर्म प्रधानता
• इस्लाम के सलाहरकार , परामर्शदाता , गुरु आदि उल्मा हुआ करते थे जिनका सल्तनत में विशेष रूप विद्यमान था
• सुल्तान को धार्मिक कार्य की नीतियां , सिद्धांग और आदेश उन्हीं के द्वारा प्राप्त हुआ करता था ।
• कई वर्षों तक उल्मा धर्मशास्त्रियों ने इस्लाम धर्म की शक्ति को बढ़ावा देने के लिए निस्वार्थ भावना से कार्य करा , अपितु धीमे धीमे नए उल्मा धर्मशास्त्रि भ्रष्ट होने लगे और सुल्तान की राजनीतिक नीतियों में स्वार्थी हस्तछेप करने लगे ।
4. सल्तनत पर विदेशी संकट
• मंगोल , चंगेज खां , जलालुद्दीन मगबर्नी आदि भारत में अपनी शक्ति कायम करने की चेष्ठा कर रहे थे जिसका दमन करने के लिए इल्तुतमिश, बलबन ने विशेष ध्यान दिया था
• दिल्ली सल्तनत को विदेशी आक्रमणों से बचाने का कार्य सल्तनत के सुल्तानो ने करा अर्थात् दिल्ली पर किसी विदेशी शक्ति को बढ़ाने नहीं दिया ।
5. आंतरिक विद्रोह
• सल्तन्त में सिंहासन पर शासन करने की कोई निश्चित अवधि नियम मुख्य न था ।
• आवश्यक नहीं था कि सुल्तान के बाद उसका ही पुत्र सुल्तान बनेगा अपितु सुल्तान बनने के लिए शासक का योग्य होना सबसे महत्वपूर्ण था ।
• अमीरों और खिलजी सरदारों का हस्तक्षेप के कारण सुल्तान स्वतंत्रता से शासन नहीं कर पाता था ।
6. दिल्ली का विकास
• 1206 ई० कुतुबुद्दीन ऐबक के सुल्तान बनने के साथ ही दिल्ली का विकास प्रारंभ हो गया था ।
• निम्नलिखी विकास संभव हुए थे -
√ प्रशासन की शक्ति में वृद्धि = बलबन ने प्रशासन को शक्ति प्रदान की थी , राजत्व के सिद्धांत , चालीस मंडल का दमन , आरिज़ ए मुमालिक , दीवान ए इंशा आदि पदों का निर्माण हुआ जिससे प्रशानिक सुधार हुए ।
√ गुप्तचर विभाग की स्थिति = बलबन ने इस विभाग की नींव डाली थी अपितु अलाउद्दीन खिलजी ने इसको अत्यन्त शक्तिशाली बनाया था और स्वयं के प्रशासन की मजबूत नींव बना लिया था ।
√ व्यापारिक विकास = अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी शक्ति का विकास ओर स्थाई सेना व्यवस्था की स्थापना करने के लिए व्यापारिक विकास करे थे जिसका परिणाम प्रशासन ओर सैन्य बल की क्षमता में वृद्धि थी । अलाउद्दीन ने बाजार व्यवस्था का अनुकरण करके दिल्ली को स्थाई सेना व्यवस्था से सुसज्जित किया था ।
निष्कर्ष : दिल्ली सल्तनत विभिन्न विषयों से विशेष है क्योंकि दिल्ली सल्तनत की विशेषताएं अद्भुत हैं, बलबन और खिलजी वंश सल्तनतकाल के दो प्रमुख हिस्सा है जिनका अस्तित्व ही दिल्ली के दिल्ली सल्तनत का रूप प्रदान करने का कार्य करती है ।
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