अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

उदारवादी युग क्या था ?

   उदारवादी युग क्या था ? 

 ∆ परिचय - 

• भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास 150 वर्षों से भी अधिक का रहा है अंग्रेजों के आगमन से एवं भारतीयों के संघर्ष तक भारतीय राजनीति के कार्यों का सारांश इस प्रकार उपलब्ध है कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में विभिन्न प्रकार के गुण - दोष विख्यात है। 

• भारत भारतीय राजनीति में राजनीतिक नेताओं एवं दलों का विश्वास, कार्य , विधि एवं सिद्धांत भिन्न-भिन्न प्रकार के रहे थे इसका परिणाम भारतीय राजनीति को दो भागों में विभक्त करने का हुआ। 

1885 ई०-1905 ई० तक के कार्यकाल भारत के राजनीतिक नियम में उदारवादी विचारधारा का रहा है क्योंकि भारतीय राष्ट्र कांग्रेस एक राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी थी जिसे भारतीयों को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने के लिए अंग्रेजों के साथ उदार मानसिकता का आविर्भाव किया था इसलिए इन 20 वर्षों को भारत के स्वतंत्रता संघर्ष एवं इतिहास को उदारवादी युग कहा जाता है। 

∆ कांग्रेस के प्रमुख उदारवादी नेताओं की सूची - 

 1- सुरेंद्रनाथ बनर्जी

 2- दादा भाई नौरोजी

 3- गोपाल कृष्ण गोखले 

4- मदन मोहन मालवीय

 5- राज बिहारी घोष 


∆ उदारवादी सिद्धांत - 


• उदारवादियों का अंग्रेजों के लिए प्रमुख सिद्धांत था - उदारवाद और मितवाद । 

• उदारवादी नेता यह मानते थे कि तत्कालीन समय में भारत की समस्याओं का समाधान उचित रूप से केवल अंग्रेज सरकार ही कर सकती है ।

• भारतीय उदारवादी नेताओं ने शिक्षा , न्याय , एवं सामाजिक समस्याओं का निवारण करने के लिए अंग्रेज सरकार से प्रार्थना पत्र एवं याचना पत्र का उपयोग कर भारतीय समस्याओं से अंग्रेजी सरकार को उन्मुख करने का कार्य किया था । 

• भारतीय उदारवादी नेता सुरेंद्रनाथ बनर्जी का मानना था कि "यदि हमें अपने राजनीतिक अधिकारों एवं राजनीतिक अभिलाषाओं की पूर्ति करनी है एवं जिस प्रकार हमने अंग्रेजी शिक्षा व अंग्रेजी शासन से भारतीयों में जो अनुशासन जागृत किया है वह महत्वपूर्ण है।"

• उदारवादी नेताओं का मनोभाव था कि अंग्रेज सरकार न्याय प्रेमी है परंतु हम स्वयं ही अपनी समस्याओं को सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने में नाकामयाब रहे हैं।

• यदि हम अपनी दुर्दशा को सरकार के समक्ष स्पष्टता से प्रकट करते हैं तो हमें एवं हमारे पूर्ण भारत को अंग्रेजी सरकार उत्कृष्ट सहायता एवं समाधान प्रदान करेगी। 


∆ कांग्रेस का अनुरोध -

• भारतीय सरकार की सर्वप्रथम मांग थी कि भारत के प्रशासनिक व्यवस्था में उन्हें भागीदार अवश्य बनाया जाए। 

• तत्कालीन समय में कांग्रेसी नेता चाहते थे की न्यायपालिका व कार्यपालिका को पृथक कार्य एवं शक्ति प्रदान की जाए । भारतीय जनता की दशा में परिवर्तन किया जाए एवं निम्न वर्ग और जमींदार और किसान वर्ग और अन्य वर्गों के साथ उदारता पूर्वक न्यायोचित कार्य किया जाए । 

• भूमि बंदोबस्त को इस प्रकार परिवर्तित किया जाए कि कृषि वर्ग के जीवन में उन्नति हो एवं भारी करो से मुक्ति प्राप्त हो।

• भारत में तकनीकी शिक्षा औद्योगिक शिक्षण का विस्तार कर सामाजिक जीवन के लिए आर्थिक सुधार किए जाएं जिसे परिणाम आर्थिक वृद्धि हो।

• उदारवादी नेता चाहते थे कि भारत में जो न्याय प्रणाली है उसमें भारतीयों को भी सदस्यता प्रदान की जाए एवं विभिन्न राज्यों में उच्च न्यायालय का भी निर्माण कराया जाए।

• भारतीय उदारवादी नेता सरकार से चाहते थे कि नागरिक अधिकारों एवं नागरिक स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए नए नियम कानून का निर्माण किया जाए जिससे भारतीय जनता को एवं भारतीय जनता के धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप का खंडन ना हो। 


∆ उदारवादी आंदोलन -


• उदारवादी नेताओ का भारत की समस्याओं के लिए निवारण करने का साधारण सा तरीका था जिसको अपना कर वे सोचते थे कि भारत की हीन व्यवस्थाओं को संतुलित करने का कार्य अंग्रेज सरकार के हाथो में ही है प्रार्थना पत्र , प्रणितिधि मंडल , मांग पत्र और याचना पत्र का उपयोग कर हम भारतीय को स्पष्टता से अंग्रेज सरकार के सम्मुख अपने दैनिक जीवन की विभिन्न प्रकार की समस्याओं का ज्ञात कराना होगा। 

• गोपाल कृष्ण गोखले कहते हैं - "भारत का अधिकतम भाग विभाजित है गरीब है और निर्बोधित है ।" अर्थात् कांग्रेसी नेता भारत की जनता को राजनीतिक छेत्र में जागृत कर उन्हें अपने अधिकारों की समझ करवाना चाहते थे , इसके परिणाम फलस्वरूप उदारवादी नेताओ ने समाचार पत्रों एवं अपने राजनीतिक भाषणों में अंग्रेज सरकार की नीतियों का संवैधानिक तरीके से विरोध किया और अपनी मांगो को सरकार द्वारा स्वीकृत कराने का प्रयास किया ।

• प्रार्थना पत्रों याचना पत्र आदि का प्रयोग उदारवादी नेताओ के लिए किसी भी रूप से उपयोगी न रहा जितने भी प्रार्थना पत्र और मांगो के लिए याचना पत्र ब्रिटेन सरकार के सम्मुख किए गए उन सभी को सरकार द्वारा खुली आंखों से अनदेखा कर दिया गया था , असंतुष्ट भारतीय उदारवादी नेताओ ने भारत की जनता को अपने साथ एकत्रित करने का कार्य किया फिर भी उदारवादी नेताओ को ब्रिटिश संसद से कोई सकारात्मक उत्तर न प्राप्त हुआ । 

1887 ई० दादा भाई नौरोजी ने भारतीय राष्ट्र कांग्रेस का इंग्लैंड में प्रतिनिधित्व करना प्रारंभ किया , डब्लू. सी. बनर्जी दादा भाई का कदम कदम पर साथ निभाते गए थे । 

1888 ई० लंदन में ब्रिटिश कमेटी ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस नामक राजनीतिक संस्था का उद्घाटन किया । इसी संस्था ने इंग्लैंड में भारतीय राजनीति कार्य की गतिविधि को बढ़ाने के लिए इंडिया नाम की पत्रिका का प्रकाशन किया था । ये पत्रिका मुख्य रूप से अंग्रेज सरकार का अवधान भारत की नीतियों के लिए केंद्रित करने का था ।
 
• अंग्रेजी सरकार लगातार भारत की राजनीतिक उद्देश्यों, कार्य और आंदोलनों को नाकारती हुई चलती जा रही थी । चूंकि कांग्रेस को अंग्रेजी सरकार विरोधी संस्था नही समझती थी । 

• भारतीय राजनीति में उदारवादी नेताओ का कार्य निसफल रहा और जनता में उदासीनता व्याप्त हुई , भारतीयों की स्थिति में किसी भी स्तर में कोई परिवर्तन न हुआ अतः स्थिति और गंभीर होती चली गई ।
• उदारवादी नेताओ की असफलता और अंग्रेजी सरकार की निरंकुशता का भारत पर यह असर हुआ की भारतीय नेताओ के दृष्टिकोण में उदारवादिता का अंत हो गया और अग्रवादिता का आरंभ होने लगा । 

1905 ई० के निकट भारतीयों की नीति में परिवर्तन हुआ और प्रार्थना , याचना संवैधानिकता का आचरण नष्ट हुआ , और विरोध , हिंसा एवं आंदोलनकारी नीतियों का आविर्भाव हुआ । इस प्रकार उदारवादी विचारधारा शैन शैन अग्रवादी विचारधारा में तब्दील हो गई । 


∆ महत्व -


1885 ई० से 1905 ई० तक भारतीय राजनीतिक नेताओ ने अंग्रेजो के लिए उदारवादी नीति का अनुकरण किया था , अर्थात उदारवादी नेताओ के कार्यों ने भारत में सभी वर्गो को इस पाठ का ज्ञात कर दिया था की अंग्रेज सरकार से  उदारवादिता के साथ संपूर्ण अधिकार एवं मांगो की पूर्ति कर पाना जटिल कार्य था । 

• भारत के स्वतंत्रता संग्राम एवं भारतीयों की राजनीतिक नीतियों में उदारवादी नेताओ का प्रयास असफल जरूर रहा था परंतु लाभहीन नही था ।

• उदारवादी विचारधारा से ही सामान्य वर्ग, जनता , भारतीय व्यापारी ,भारतीय कृषक वर्ग आदि संपूर्ण भारतवर्ष के विभिन्न धर्मों एवं समाजों को ,विभिन्न भारतीय संस्थाओं को एकजुट कर एक आधार पर चलने किए एकजुट रहने की सफल अवस्था का निर्माण किया था । 

• उदारवाद ने भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण कार्य करते हुए नवीन दिशा का द्वार दिखाया था इसलिए इस युग को भारतीय राष्ट्रवाद का बीजारोपण युग कहा गया है । 


∆ निष्कर्ष -


असंतुलित राजनीति , अजागृत भारत की जनता , भारत की सोचनीय स्थिति , जनता में अपनी स्वतंत्रता एवं अधिकारों को लेकर अचेतना आदि , समाजिक एवं राजनीतिक अवस्था अत्यंत सोचनीय थी और तो और अंग्रेज सरकार के अत्याचारों एवं भ्रष्ट प्रशासन से परेशान जनता अपने जीवन का त्याग करने में लगी थी । 

• उदारवादी विचारधारा में इन सभी समस्याओं का कुछ प्रतिशत निवारण अवश्य किया परिणाम स्वरूप भारत की जनता एवं अन्य समाज वर्ग अपने हितों अधिकारों एवं स्वतंत्रता के लिए प्रथम बार एकजुट होकर अंग्रेजी सरकार के समक्ष एकत्रित हुई , एवं संपूर्ण भारतवर्ष के सभी वर्गो में भारतीय राष्ट्रीयता एवं एकता की भावना का संचार हुआ ।

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