अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

तैमूर लंग का इतिहास | Taimoor lang ka itihas

  तैमूर लंग का इतिहास|Taimoor Lang Ka Itihaas

∆ परिचय 

बार्लस कबीले की शाखा चतगाई के प्रधान अमीर तुर्गाई के पुत्र तैमूर लंग का जन्म ट्रांस ऑक्सियाना( कैच ) (वर्तमान समय में तुर्किस्तान )में हुआ था। तैमूर जब 33 वर्ष का हुआ तब वह समरकंद का शासक बना। 

• तैमूर का शाब्दिक अर्थ होता है - लोहे के समान या लोहे जैसे शरीर वाला अथवा मजबूत।

• तैमूर ने जब भारत पर आक्रमण किया उस वक्त दिल्ली सल्तनत में फिरोज का पोता मोहम्मद शासन कर रहा था। तैमूर के भारत पर आक्रमण की वजह तैमूर के पौत्र पीर मोहम्मद को बताया जाता है।


तैमूर-लंग-का-इतिहास


तैमूर का भारत पर आक्रमण -

भारत की जमीन पर पांव रखते ही सर्वप्रथम उसने मुल्तान पर अभियान किया।

(क) - मुल्तान पर अभियान - 

• मुल्तान पर अपने पोते द्वारा सेना भेजे जाने के पश्चात उसने वहां अधिकार कर लिया । वहां से तालंबा का अभियान करके दीपालपुर ( वर्तमान में पाकिस्तान में) पर विजय प्राप्त कर भटनेर की ओर चल दिया। 

(ख) - भटनेर का अभियान -  

• भटनेर में तैमूर ने भारी क्षती पहुंचाई , और खूब धन लूटा व लूटपाट भी बहुत की । कई धनी अमीर भी निर्धन हो गए। उसने भटनेर के दुर्ग को भी घेर लिया था, इतिहासकारों ने इसका कारण दीपालपुर के विद्रोहियों को सजा देना बताया है ।

(ग) - सिरसा और कैथल (हरियाणा) का अभियान -

• कैथल तथा सिरसा में उसने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए वह अनेकों हिंदुओ एवं अपने विद्रोहियों को मौत के घाट उतारता गया । इतने में भी उसकी महत्वाकांक्षा न रुकी। उसने कुछ को बंदी बनाया और उन सभी हिंदू विद्रोहियों को जिन्होंने भी उसके खिलाफ तलवार उठाई उन सबके जीवन का अंत कर दिया।और अनेक हिंदुओ को एवं उनकी स्त्रियों को जबरन धर्म परिवर्तन कर, हिंदू से इस्लामी धर्म अपनाने के लिए बेबस कर दिया। 

• दिल्ली को लूटने से पूर्व ही उसने रास्ते में सिरसा और कैथल को लूटते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया । 

(घ) - दिल्ली अभियान - 

17 दिसंबर 1398 ई० को उसने दिल्ली पर विजय प्राप्त कर अगले ही दिन 18 दिसंबर 1398 को दिल्ली पर अपना प्रतिनिधित्व स्थापित कर दिया।दिल्ली की जनता की स्थिति अत्यंत ही दयनीय हो चुकी थी, तैमूर ने वहां भारी मात्रा में लूटपाट करी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार तैमूर के भय से वहा के शासकों को भी भागने पर मजबूर होना पड़ा ।

• तैमूर वहा के कारीगरों को और जनता को जोर जबरदस्ती से गुलाम बनाकर अपने साथ ले गया। कई लोगों को निश्चित ही अपने प्राण गंवाने पड़े। 

• भारत पर शासन न करने के विचार को ध्यान में रखते हुए उसने 1 जनवरी 1399 को दिल्ली से प्रस्थान ले लिया था।  

(ड़) - हरिद्वार तथा मेरठ का अभियान - 

• विद्वानों ने इसिहास में तैमूर के हिंदू अभियान का वर्णन किया है जिसमे ये बतलाया गया है की तैमूर के विरुद्ध दो शक्ति शाली हिंदू सेनाओं ने युद्ध की घोषणा करी थी और तैमूर को खदेड़ने का निसफल प्रयास किया था।अतः तैमूर की शक्ति ने हिंदुओ की मंशा को निसफल कर दिया और भव्य विजय प्राप्त की।वहां उसने दो हिंदू सेना के विरुद्ध युद्ध किया और विजयी रहा।उसने दिल्ली से फिरोजाबाद के रास्ते मेरठ पहुंचकर उसे लूटा । 

(च) - जम्मू का अभियान -

 चुरिया पहाड़ी ( हिमालय पर्वत श्रृंखला ,शिवालिक ) से गुजरते हुए वह कांगड़ा पहुंच गया।वहां उसने बहुत लूटपाट की तथा वहां से जम्मू की ओर निकल पड़ा।जम्मू में भी उसने काफी लूट मार करके दिपालपुर खिज्र खां को देखकर वह वापस समरकंद की ओर चल पड़ा । ‌


∆ तैमूर आक्रमण के पश्चात भारत की स्थिति - 

1 -हिंदुस्तान के जनधन का विध्वंश - 

इतिहासकारो के अनुसार तैमूर के आक्रमण के परिणाम स्वरुप देश में अकाल की स्थिति पड़ गई जिसमें दिल्ली को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा कई खेत, फसले, उपज नष्ट हो , गए लाखों लोग मारे गए। 

• संपूर्ण भारत में तैमूर का इतिहास हिंदू के विनाश का चित्र प्रदर्शित करता है।हिंदुओ ने अनेक बार दिल्ली सल्तनत के प्रसिद्ध शासकों के आक्रमणो का सामना किया था।परंतु इतना जनधन का नाश किसी सुल्तान ने न किया जितना तैमूर लंग के आने से हुआ। 

2- भारतीय कला का विदेश में विस्तार - 

• तैमूर ने जब भारत पर आक्रमण किया तो उसने भारत के सनातनी क्षेत्र को व वहां की धरोहर को भी बहुत नुकसान पहुंचाया उसने कई मंदिरों व प्राचीन भवनों को भी तोड़ा तथा यहां के शिल्पकारों को अपने साथ अपना गुलाम बनाकर ले गया , इन गुलामरूपी शिल्पकारों ने इसके अधीन कई इमारतों का निर्माण किया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्य एशिया तक भारत की कला का प्रचार प्रसार भी हुआ । 

3- तत्कालीन वंश का पतन - 

• तैमूर का आक्रमण इतना क्षतिग्रस्त रहा कि दिल्ली के उस आक्रमण ने तत्कालीन वंश का पतन करते हुए तत्कालीन शासन सैनिक ,प्रांतीय शासक ,अन्य अमीर , सरदारों एवं राज्य दरबारीयो को मौत के घाट उतार दिया। 

• तत्कालीन विशेष इतिहासकारों का कहना है कि तैमूर के आक्रमण ने दिल्ली के सुसज्जित किलो एवं शक्तिशाली वंश के अस्तित्व को नष्ट करते हुए दिल्ली के सुशासन को लंबे समय तक के लिए भंग कर दिया था। 

• तैमूर के आक्रोश का प्रभाव इतना दयनीय रहा कि उसने दिल्ली को मानवहीन तो किया ही साथ ही दिल्ली के वातावरण में जीवन का भय उत्पन्न कर दिया अर्थात दिल्ली के सभी मुख्य मार्गों पर इतना पानी ना बहा जितना रक्त बहता गया। 

4- बाबर तैमूर का वंशज -

• तैमूर ने तुगलक वंश को नष्ट कर दिया था मोहम्मद बिन तुगलक और फिरोज शाह तुगलक के पश्चात कोई उतराधिकारी दिल्ली को पुनः शक्तियुक्त नही बना सका था , इसी का लाभ उठाते हुए बाबर ने दिल्ली पर अधिकार करने के लिए युद्ध की योजना बनाई। 

• बाबर ने दिल्ली पर आक्रमण करने की सोची जरूर लेकिन उसके पास इतना साहस ना था को वो इब्राहिम लोदी पर आक्रमण कर सके , परंतु लोदी के साथ विश्वासघात करने वाले कई राजदरबारियो के कारण बाबर को दिल्ली की कमजोरियों का ज्ञान मिला और तभी बाबर ने दिल्ली के इब्राहिम लोदी पर कड़ी योजना के साथ युद्ध की घोषणा कर दी और पानीपत के मैदान पर इब्राहिम के खिलाफ बाबर लगभग 1200 सैनिकों के साथ इब्राहिम के 1 लाख सैनिकों को अपनी कपटिय बुद्धि से परास्त करने में सफल रहा अर्थात 1526 ई० में दिल्ली सल्तनत का अंत हुआ ।


निष्कर्ष: तैमूर लंग एक मात्र दिल्ली सल्तनत के पतन का मुख्य कारण बना , क्योंकि तैमूर ने अगर दिल्ली को इतना भारी नुकसान नहीं पहुंचाया होता तो , बाबर दिल्ली पर अधिकार करने का विचार तक न कर सका था । 

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