अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

लॉर्ड लिटन | Lord Lytton

लॉर्ड लिटन|Lord Lytton 

 [ लॉर्ड लिटन के प्रशासनिक कार्य ]

शासनकाल - 1876 से 1880 तक।

मुख्य नीतियां - दुर्भिक्ष नीति , वित्तीय विकेंद्रीकरण की नीति । 

एक्ट - वर्णाकुलर प्रेस एक्ट (मुंह बंद कर देने वाला एक्ट) 


8 नवंबर 1831 को लंदन में जन्मे लॉर्ड लिटन सन 1876 में भारत के गवर्नर जनरल बने , तथा 1880 तक इस पद पर कार्यरत रहे। 

• इन्ही के शासनकाल के तहत पहला दुर्भिक्ष आयोग भी विकसित हुआ । 

• भारत के इतिहास में उनके द्वारा पारित किया गया सन् 1878 का  वर्नाक्यूलर एक्ट अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसका कारण यह था की यह एक्ट भारत में छापे जाने वाले अखबार तथा उनमें छपने वाली खबरों से संबंधित था जो निश्चित ही विद्रोह तथा बगावती मानसिकता को उजागर कर रही थी । 


✓ [ क्या था  वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट ? ]

वर्नाक्यूलर

• यह एक्ट मार्च 1878 में दुनिया के सामने आया । 

• यह एक्ट देशी अखबारों के लिए पारित किया गया था । तथा अंग्रेजी अखबारों पर लागू नहीं होता था । 

•  वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट का कार्यभार मजिस्ट्रेट पर होता था । संघीय सरकार समर्थन पर अखबार के प्रकाशन होने ,मोहर, मुद्रक आदि सभी कार्य मजिस्ट्रेट की निगरानी में होते थे । 

• सरकार के विरुद्ध खबरे छापने पर प्रतिबंध होता था । तथा सरकार से संबंधित खबरों को छापने के लिए पहले सरकार से स्वीकृति की आवश्यकता होती थी । इसका कारण यह था की सरकार के विरुद्ध खबरों से आपसी तालमेल में कमी , विद्रोह ,मन मुटाव की स्थिति मनोवृत्तियां लोगो में जागृत होने लगती थी । 

• लिटन ने  वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट "आयरिश कोपश एक्ट" से प्रभावित होकर बनाया था । 

• यदि कोई भी समाचार पत्र (अखबार) उसका उलंघन अथवा इस एक्ट के नियम के विरुद्ध जाता था तो ऐसी स्थिति में उसे दंडित किया जाता था । अखबार के मुद्रक को भी रोक दिया जाता था । 

• यह कानून ज्यादा लंबा न चल सका । इसका कारण इस कानून का लगातार भारत और इंग्लैंड में विरोध तथा नेताओं के द्वारा कटु आलोचना की स्थिति रही । 

• अंततः रिपन के काल में 1882 में इस कानून को रद्द कर दिया गया । 


∆ इसके अलावा लॉर्ड लिटन ने कई सुधार कार्य भी किए जिनका वर्णन इस प्रकार है -

1- वैधानिक नागरिक सेवा - 

• इसकी स्थापना 1879 में हुई थी । 

• इसके तहत भारतीय नागरिक सेवा का छठवा भाग को भारतीय ही भरते थे । 

• स्थानीय सरकार इन भारतीय का चुनाव करती थी । जिनके परीक्षा हेतु लंदन जाना होता था।  

• परिक्षार्थीयो की परीक्षा में सम्मिलित होने की आयु 18 वर्ष कर दी गई । जो की पूर्व समय में 21 वर्ष थी । 


2- शिक्षा क्षेत्र में विकास -

इसके अंतर्गत लिटन ने मुस्लिम कॉलेज की स्थापना की जो की अलीगढ़ में है। तथा वर्तमान समय में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध है।


3- वित्तीय सुधार -

1877 में लिटन के द्वारा एक सिफारिश की गई जो 1877 के रेगुलेशन के नाम से प्रख्यात हुई थी।

• इसमें वित्तीय भी केंद्रीकरण से जुड़ी कुछ बातें थी जिनमें भू- लगान ,आबकारी, प्रशासन, न्यायालय स्टांप शुल्क आदि मामलों से संबंधित कार्य प्रांतीय सरकार द्वारा किए गए थे ।

• बाद में जब यहां देखा गया की प्रांतीय सरकार को उसे मात्रा में धन नहीं मिल पा रहा है जितनी उनकी आवश्यकता थी तब "एडजस्टिंग असाइनमेंट" की व्यवस्था की गई ।

• यह व्यवस्था सालाना बजट और उनकी आवश्यकताओं पर आधारित थी इस आवश्यकताओं को पूरा करने का कार्य इस व्यवस्था द्वारा किया जाता था।

• इसमें एक वित्तीय कोड भी होता था जिसका पालन प्रांतीय सरकार को करना अनिवार्य था।

∆ अन्य सुधार - 

लॉर्ड लिटन ने और भी कई सुधार किए जैसे - 

भारत की न्यायपालिका में परिवर्तन किया जिसके अंतर्गत "इंडियन प्रिवी काउंसिल" की मांग हुई लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया ,बाद में 1919 के अधिनियम में "चैंबर्स ऑफ प्रिंसेस " संस्था का गठन हो गया जो इंडियन प्रीवी काउंसिल पर ही आधारित थी। 

लिटन द्वारा नमक कर को संपूर्ण राष्ट्र में समान कर दिया गया ।

लिटन ने अंतरद्वीपय कर को भी पूर्णतया समाप्त कर दिया ।

1877 में दिल्ली दरबार का आयोजन हुआ जिसमें बहुत धन का व्यय किया गया जिसकी घोर निन्दा हुई ।


 [ मूल्यांकन ]

• लिटन ने अपने वायसराय कार्यकाल में जितने भी कार्य किये वे सभी अंग्रेज सरकार के भावी लाभ के दृष्टिकोण के अनुसार किये , क्योंकि वायसराय को अधिक शक्ति प्रदान भी इसलिए की गई थी ताकि अंग्रेजो का शासन क्रियाशील होता रहे । 


• लिटन ने अपनी शक्तियों का पूरा उपयोग करते हुए अंग्रेज सरकार की नीव को भविष्य के लिए और अधिक मजबूत करने की कोशिश की । 


• लिटन ने जो अकाल आयोग और स्ट्रैची कमीशन की स्थापना की थी वो हालाकि भारतीय जनता के लिए बेहद उपयोगी और महत्वपूर्ण थी अर्थात ये भी लिटन ने अंग्रेज सरकार के भावी लाभ के लिए ही की थी । 

• भारत में 16 वायसराय पदग्रह करे और उन सभी में लिटन के विरुद्ध जितना आंदोलन भारतीयों ने किया उतना अन्य किसी वायसराय या गवर्नर जनरल के लिए नही हुआ था ।


निष्कर्ष : लॉर्ड लिटन ।

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