अलाऊद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in Hindi

  अलालुदीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति in hindi परिचय  • अलालुद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का शासक था , जो की अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहता था इसलिए अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए स्वयं को अपारशक्तिशाली बनाने के लिए कई योजनाएं बनाई थी जिसमे से  उसकी " बाजार नियंत्रण नीति व योजना " इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये योजना का वर्तमान अर्थ व्यवस्था में भी उपयोग होता है ।  [ बाजार नियंत्रण नीति अपनाने का कारण ] 1. आर्थिक स्थिति को लंबे समय के लिए मजबूत बनाने  रखने की सोच :  अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का शासक होते हुए बाहरी अभियान किए थे जिसमे उसको अपार धन खर्च करना पड़ा था ।  2. स्थायी सैन्य व्यवस्था की स्थापना : अलाउद्दीन को स्मरण था की विश्व विजय प्राप्त करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके पास विशाल सेना होने के साथ ही साथ दिल्ली सल्तनत में एक बड़ी , बलवान , सशस्त्र स्थायी सेना का होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है अर्थात अलाउद्दीन के लिए महत्वपूर्ण था कि वो दिल्ली में स्थायी सेना को सुसज्जित करक...

1909 का भारत सरकार अधिनियम | 1909 ka bharat sarkar adhiniyam

 1909 का भारत सरकार अधिनियम

परिचय 

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के साथ ही भारत में स्वतंत्रता, स्वत शासन और संवैधानिक अधिकारों की मांगे भड़ती जा रही थी । 1858 के भारत परिषद अधिनियम लागू हो जाने के पश्चात ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को तो समाप्त कर दिया गया था अपितु भारतीय अब स्वत शासन की मांग कर रहे थे , भारतीयों की मांगों और उनके आक्रोश को थामने के लिए अंग्रेज सरकार ने भारतीयों के विषय में एक नया अधिनियम प्रस्तुत कर विभिन्न धाराएं भारत के समक्ष प्रस्तुत की । 

[1909 अधिनियम पारित होने के विशेष कारण] 

पहला कारण : [ 1892 अधिनियम से असंतुष्टि

1909 के अधिनियम पूर्व 1892 का अधिनियम लागू किया गया था जिससे भारतीय जनता को उम्मीद थी की उनकी मांगें पूरी करी जायेगी परंतु 1892 के अधिनियम ने एक भी उम्मीद और मांग पूरी नही करी , कुछ प्रमुख मांगे ; उदाहरण : अप्रत्यक्ष चुनाव पद्धति , केंद्र का प्रान्तो में अधिक दख़लअंदाज़ी/ हस्तक्षेप और भारतीयों की प्रतिनिधित्व की मांग । 


दूसरा कारण : [ प्लेग और मलेरिया महामारी

1892 के अधिनियम से दु:खी जनता की समस्याएं अब अधिक बढ़ रही थी । भारत में प्लेग और मलेरिया महामारी अत्यधिक तेजी से फैल रही थी और इसी बीच 1896 - 971899 - 1900 में भारत के विभिन्न भागों में भव्य अकाल भी पड़ा , जनसाधारण की समस्याएं और अधिक तेज़ी से बढ़ने लगी थी और अंग्रेज सरकार कोई सहायता करने को राज़ी नहीं थी । 

• इस वक्त अपनाई गई अंग्रेज सरकार को नीति का विश्व के अनेक राष्ट्र ने कटु आलोचन और निन्दा भी करी । 

 

तीसरा कारण : [ लॉर्ड कर्जन की वायसराय पद पे नियुक्ति

लॉर्ड कर्जन भारत का एक ऐसा वायसराय था जिसने भारत में अधिक सुधार के कार्य किए  थे ,जिसमे पुलिस आयोग 1902 और विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना 1902 , विशेष कार्य थे। 

• योग्य और शिक्षित होने के कारण वह भारत का वायसराय नियुक्त किया गया था ताकि वह भारत की समस्याओं  को सुलझा सके परंतु कर्जन योग्य तो था पर  उसने निरंकुश शासन पद्धति अपनाने के कारण भारत की परिस्थितियों को और खराब बना दिया था । 

"विक्टोरिया स्मारक " ; एक ओर भारत की जनता अकाल के मारें त्रस्त और भुखमरी का सामना कर रही थी उसी समय लार्ड कर्जन ने कलकत्ता में लाखो रुपए का खर्चा कर "विक्टोरिया स्मारक" बनवाया । त्रस्त जनता की समस्या का कोई हल भी नहीं निकाला जा रहा था और उसी समय कर्जन ने भारत के विभिन्न स्थानों के राज्यकोष में धन की आवृत्ति करने के लिए 25% भूमि कर दिया । 

"1905 बंगाल विभाजन की घोषणा / उग्रवादियों का जन्म ";  उपयुक्त नीतियों से भारतीय जनता आंदोलन के लिए विवश हो चुकी थी और बंगाल के विभाजन ने भारतीयों की सहन शक्ति को लांग दिया और इसी कारण 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ और भारत में एक नए दल का गठन हुआ जिसने अंग्रेजो के विरुद्ध उदार नही उग्र आंदोलन और हिंसा की योजना बनाई अर्थात 1885 से लेकर 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उदारवादी नीति /आंदोलन अपनाती रही थी , बंगाल विभाजन से उग्रवादी आंदोलन का प्रारंभ हुआ । 


चौथा करण : [ उग्रवादी नेताओं की एकजुटता ]

• बंगाल विभाजन ने भारतीयों की सहन शक्ति को तोड़ कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदारवादी नीतियों को उग्रवादी आंदोलन करने के लिए विवश कर दिया , देश के 3 प्रसिद्ध राज्यनेता व क्रांतिकारी अंग्रेजो कर विरुद्ध आन्दोलन को सफल बनाने में लग गए थें , इस आन्दोलन में प्रमुख थें" बाल गंगाधर तिलक , विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपतराय " । 


पांचवा कारण : [ राष्ट्रवादियों का आतंक

• अंग्रेज सरकार भारत की याचना और प्रार्थना पे कोई सुनवाई नहीं कर रही थी, इसी बीच अकाल, भूमि कर में परिवर्तन होने से भारतीय जनता रूष्ट थी और बंगाल विभाजन, प्लेग और मलेरिया महामारी के कारण जानता की स्थिति सोचनीय होती जा रही थी और भारतीयों की मांगों पे अंग्रेज सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही थी , 

1905 में जब उग्रवादी आंदोलन प्रारंभ हुआ तो भारत में असंतुष्ट पीड़ित भड़की जनता तेज़ी से आंदोलन कर रही थी । उग्रवादी आंदोलनकारी अंग्रेजो के विरुद्ध आन्दोलन के साथ-साथ आतंकवादी क्रियाओं को अंजाम देना लगे , भारतीय युवा उग्रवादी आंदोलनकारियों ने " ढाका के मजिस्ट्रेट और नासिक के कलेक्टर " की हत्या कर दी थी 


1905 से भारत की क्रांतिकारी दिशा में परिवर्तन हुआ 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उग्रवादी आंदोलन प्रारंभ किया । 

उग्रवाद क्रांतिकारियों के आंदोलन और भारतीय जनसाधारण के भरते आक्रोश के समक्ष अंग्रेज सरकार को भारतीयों के लिए " 1909 का भारत सरकार अधिनियम " पारित किया गया । 


    1909 भारत सरकार अधिनियम की धाराएं

केंद्रीय और सभी प्रांतिया विधान सभाओं के सदस्य संख्या में परिवर्तन हुआ। 

[ केंद्रीय विधानसभा सदस्य : 25 से 68 की गई

[ मद्रास व बॉम्बे सदस्य : 24 - 24 से 46 - 46 की गई।

[ पंजाब सदस्य : 10 से 24 की गई

[ उ.प प्रान्त सदस्य : 16 से 47 की गई।

[ बंगाल सदस्य : 21 से 52 की गई ।

प्रान्त सभाओं के सदस्यों का निर्वाचन संप्रदाय के आधार पे किया जायेगा । 

प्रान्त सभाओं को सार्वजनिक विषय पे सवाल पूछने का अधिकार दिया गया। 

गवर्नर की अनुमति से प्रान्त में कार्यकारी समिति का निर्माण किया जा सकता हैं। 

केंद्र सभा के अध्यक्ष को इतनी शक्ति प्रदान करी गई की वह किसी भी प्रस्ताव को आ स्वीकार कर सकेगा ।

1909 अधिनियम में भारतीय को पहली बार वायसराय की कार्यकारिणी समिति का सदस्य नियुक्त किया गया। 

किसी भी अपराधी या जिसपे मुकदमा चल रहा होगा वो सभा का सदस्य नियुक्त नहीं किया जायेगा ।


निष्कर्ष : 1909 का भारत सरकार अधिनियम 

_____________________________________________

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

खिलजी वंश के वस्तुनिष्ठ प्रश्न | Khilji Vansh Ke Mcq questions in hindi

भारत में हरित क्रांति

गुलाम वंश के वास्तुनिष्ठ प्रश्न in hindi